11 फ़रवरी, 2017

गुड़िया (बाल कविता )



मेरी गुड़िया रंग रंगीली
बेहद प्यारी छवि  उसकी
दिन रात साथ  रहती
मुझे बहुत प्यारी लगती |
है  बहुत सलीके वाली
होशियारी विरासत में मिली
पढाई में सब से आगे
सभी की दुलारी है
अभी से है चिंता 
जब यह ससुराल  जाएगी
 क्या हाल होगा उसके बिना
पर जाना भी तो जरूरी है |
मैंने एक गुड्डा देखा
पर उसने नापसंद  किया
फिर अपनी पसंद बताई
पर वह पूरी न हो  पाई |
अब भी तलाश जारी है
गुडिया जैसा रंग रंगीला
जब  पसंद आ जाएगा
वही उस का वर होगा |
आशा

07 फ़रवरी, 2017

सियासत




थोथी सियासत ने
जान डाली सांसत में
अब तो उसके भी
लाले पड़ गए हैं
संयम तक नहीं
बरत पाते
सरेआम इज्जत
गवा रहे हैं
बिना सोचे
 किये कटाक्ष
बहुत मंहगे पड़ रहे हैं
वार पर वार और
आरोपों के पलट वार
कीचढ़ में पत्थर
डालने सा है
और कुछ हो या न हो
खुद  पर
कीचड़ के छींटे
उड़ रहे हैं |
आशा


05 फ़रवरी, 2017

दोस्ती



की सच्चे मन से दोस्ती
प्रसन्न रहा करते थे
दिन रात उसी के गीत गाते
बढ़ चढ़ कर उन्हेंदोहराते
पर पहचान नहीं पाए
 पीछे से जिसने वार किया
दोस्ती पर कीचड़ उछला
शर्म से सर झुक गया
शब्दों के प्रहारों ने
कोमल मन छलनी किया
अब तो इस नाम से ही
दहशत होने लगती है
नफ़रत बढ़ने लगती है
फिर से विचार मन में आता
बेमुरब्बत दोस्त से तो
बिना दोस्त ही रहना बेहतर
दोस्ती पर तो दाग न लगता
मन में मलाल न आता |
आशा


03 फ़रवरी, 2017

रंग मौसमी




हरी भरी धरती पर
पीले पुष्पों से लदे वृक्ष
जल में से झांकती 
उनकी छाया
हिलती डुलती बेचैन दीखती
अपनी उपस्थिति दर्ज कराती
तभी पत्थर सट कर उससे
यह कहते नजर आते
हमें कम न आंको
हम भी तुम्हारे साथ हैं
आगया है वासंती मौसम
उस के रंग में सभी रंग गए
फिर हम ही क्यूं पीछे रह जाते 
हम भी रंगे तुम्हारे रंग में
जब पर्वत तक न रहे अछूते
दूर से धानी दीखते
फिर हम कैसे पीछे रह जाते |
आशा


31 जनवरी, 2017

गर्दिश में


गर्दिश में जब हों सितारे
ऊंचाई छूने नहीं देते
जब भी रंगीनियाँ खोजो
उपभोग करने नहीं देते |
मन मसोस रह जाना पड़ता
भाग्य को मोहरा बना कर
कोसना ही शेष रहता
मन मलिन होने लगता |
गर्दिश के दिन कब हों समाप्त
सोच सोच विचलित वह होता
आते जाते गर्दिश के दिनों पर
वह पशेमान होता |
आशा

30 जनवरी, 2017

तब और अब



जाने कितनी बार 
थिरके मुरली की धुन पर 
पर वह बात न देखी 
जो थी माधव की मुरली में |
उस मधुर धुन पर नर्तन 
राधा रानी के साथ में 
मन मोह लिए जाती 
जीवन में गति आ जाती |
पहले था पारद धातु सा जीवन 
यहाँ वहां लुढ़कता था 
स्थिर नहीं हो रह पाता था 
पर अब कुछ परिवर्तन तो आया |
है यह कैसा स्वभाव उसका
चंचल उसे बना गया
मनमानी वह करता
स्थिर कभी न हो पाता  |
मोहन को धेनु चराते देखा
काली कमली ओढ़ कर
गौ धूलि बेला में
उन्हें धुल धूसरित आते देखा |
अब वह बातें कहाँ रहीं
गाएं अकेले आती जाती हैं
खुद को असुरक्षित पाती हैं
मोहन की हांक  बिना |
आशा





25 जनवरी, 2017

तिरंगा हमारा


तिरंगा हमारा देख कर
हुआ उन्नत भाल
मन ही मन उत्फुल्ल हुआ
नहीं जिसकी मिसाल |
तिरंगे की छाँव तले
देश ने एक स्वप्न सजाया
जिस को पूर्ण करने के लिए
कर्मठता का दामन थामा|
यही उसे आगे बढ़ाती
देश को अग्रणी बनाती
अपनी ऊर्जा से देश को
नया रूप देना चाहती |
तिरंगे के तीन रंग
अपने आप में पूर्ण
भगुआ रंग जोश भरता
सारे कार्य सफल करता |
श्वेत रंग शान्ति का द्योतक 
समृद्धि का हरा रंग परिचायक
चक्र बताता विविधता में एकता
देख देख मन न भरता |
भारत माता की जय बोलता
बार बार दोहराता
कर्मठता की राह पर चलता
खुद को धन्य समझता |
आशा