06 जून, 2018

दहलीज


-















कभी भी कहीं भी
जब कदम घर से बाहर
 निकलते  नए परिवेश में
जाने की तैयारी में
दी जाती हिदायतें बारम्बार
 यही कहा जाता
हम तुम्हारे भले के 
लिए कह रहे हैं
  जानते हैं तुम्हें 
अच्छी नहीं लगती रोक टोक
 पर समाज से बंधे हैं
 जिसने बनाया उन्हें 
 ये बनाए गए हैं 
  समाज में विचरण के  लिए
 सफल जीवन जीने के लिए
लड़कों को कम टोका  जाता
पर बेटियों की  खैर नहीं
भूले से यदि दरवाजे पर 
  खड़ी हो  बतियातीं
घर में भूचाल आ जाता
उदाहरण बहुत सटीक होते
सीता ने की पार लक्ष्मण रेखा
भोगना पड़ा 
अत्याचार रावण का
अब तो है कलियुग
 समय पहले सा नहीं रहा
दहलीज लांघने के पहले   
 सीमा पार करने के 
पहले सोच लें दस बार
नतीजा क्या होगा ?
 बनाए गए नियम
 किस हद तक हैं सही
 जानना है आवश्यक
 है यह सही  सोच 
समझ का  परिणाम
जब कदम उठाएं
सोच विचार कर
दहलीज पार कर आगे बढ़ें
दहलीज पार करने के पहले
  जान लें अच्छे बुरे
 कार्यों के परिणाम
उनका प्रभाव कैसा होगा? 
जीवन में सफलता की 
 कुंजी है यही |
आशा

लक्षमण रेखा




क्यूं बंद किया
लक्ष्मण रेखा के घेरे मै
कारण तक नहीं समझाया
और  वन को प्रस्थान किया
यह भी नहीं सोचा
मैं भी हूँ  एक मनुष्य
स्वतन्त्रता है अधिकार मेरा
यदि आवश्कता हुई
अपने को बचाना जानती हूं
पर शायद यहीं मै गलत थी
अपनी रक्षा कर न सकी
रावण से ख़ुद को बचा न सकी
मैं कमजोर थी अब समझ गयी हूं
यदि तुम्हारा कहा सुन लिया होता
दहलीज पार ना करती
अनर्गल बातों से दुखित तुम्हें ना करती
हा राम हा राम की आवाज सुन
राम तक पहुंचने के लिए
 कष्ट में   हैं  राम   सोच
सहायतार्थ जाने के लिए 
 तुम्हें बाध्य ना किया होता
रावण को दान देने के लिए
लक्ष्मण रेखा पार न करती 
दहलीज पार करने का 
दुस्साहस न किया होता
यह दुर्दशा नहीं होती
विछोह भी न सहना पड़ता
अग्नि परीक्षा से न गुजरना पड़ता
धोबी के कटु वचनों से
मन भी छलनी ना होता
क्या था सही ओर क्या गलत
अब समझ पा रही हूं
इसी दुःख का कर रही हूं निदान
धरती से जन्मी थी
फिर धरती में समा रही हूं |

आशा 




05 जून, 2018

मुश्किल






है आज मुश्किल धड़ी
सोच कर हूँ परेशान
कैसे पिंड छुटाऊँ
उन यादों से
जिनका कभी असर
 मन पर गहरा  पड़ा
मन का सुख छीन ले गया
यादें जो मीठी हैं
कभी कभी ही  दस्तक देती हैं
मन के दरवाजे पर
पर कटु बातें तो
 डेरा जमाएं बैठी हैं
है बहुत मुश्किल  उनसे
पिंड छुड़ाकर दूर जाना
खुशहाल जिन्दगी जीना
सोच रही हूँ कोई तरकीब
कटु यादों को भूल कर
नई शुरुबात जिन्दगी में
 प्रसन्न रहने की करू |

आशा

03 जून, 2018

बैर भाव


आपस में बैरभाव 
तिल तिल बढ़ रहा है
गहरे हुए घावों को
मन में हुई दरारों को
अब सहन न कर पाएंगे
यदि यही सिलसिला
चलता रहा तब
हर तरफ शायद 

ये कत्लेआम होगा
एक दूसरे से दूरी
इतनी हो जाएगी कि
पहचान ही खो जाएगी
गहरी खाई पट न पाएगी
बारूद पर कदम होंगे
अस्तित्व कहीं खो जाएगा
भाई भाई को न पहचानेगा
मन में गठान पड़ जाएगी |
आशा

02 जून, 2018

तेरी निगाहें




ऐसी आकर्षक निगाहें तेरी
यदि पड़ गईं किसी पर
देखते ही प्यार हो जाएगा
यदि भूल से भी वह इनसे
बच  कर निकल गया
दिन पूरा उसका खराब जायगा
चेहरा तेरा खिले गुलाब सा
भीनी अनोखी सुगंध उसकी
मन को ऐसी भाई कि वह
उनमें ही डूबता रह जाएगा
 जीवन भर तेरा अभाव रहेगा
पर अपना दुःख वह किसे बताएगा |
जो होना था सो हो गया पर
 अपने दिल की बात किसे बताएगा
वह तेरे बिना अधूरा रह जाएगा
मनोरथ पूर्ण न हो पाएगा |


आशा सक्सेना