उससे मुंह मोड़ा
क्या यह है सही ?
अंतर मन से सोचना फिर कहना
है यह कहाँ की ईमानदारी
जब मन चाहा खेला
फिर उससे मुंह फेरा
जिन्दगी के चार दिन
उस पर लुटाए
बाद में मन भर गया
तब लौट कर न देखा
फटे पुराने कपड़े की तरह
उसका मोल किया
हकीकत तो यह है कि
तुमने उसे कभी चाहा ही नहीं
उसको दूध की मक्खी समझा
उसका केवल उपभोग किया
हो तुम कितने कठोर
कभी सोचा भी न था
हकीकत को तो नहीं झुटला सकते
पर तुमसे मन की
दूरी जरूर हो गई है
यह तुमने क्या किया ?