मैं गला फाड़ कर रोया
जगत हंसा खुशियाँ मनी
थाली बजी मिठाई बटी |
बचपन खेल कूद में बीता
पढ़ना लिखना सीखा
जब हुआ युवा गंभीरता आई
जिम्मेदारी खूब निभाई |
वानप्रस्थ आते ही
भविष्य की चिंता सताई
उम्र पूरी होने को आई
जाने कब बुलावा आ जाए |
सुबह एक दिन जागा नहीं
ऐसी गहरी नींद में सोया
मुझे हिलाया डुलाया
पर हिल् तक न पाया |
अपने पराए करने लगे रुदन
बिस्तर छोड़ जमीन पर लिटाया
चार बांस की ठठरी पर लिटा
मुक्ति धाम तक पहुंचाया |
अंतिम विदाई की बेला में
अंतिम विदाई की बेला में
चिता पर आसीन किया
घृत से पूरा नहलाया
चिता को भी खूब सजाया |
जब अग्निसंस्कार हुआ
धूं धूं कर जल उठी चिता
पञ्च तत्व से बना शरीर
उसमें ही जा मिला |
अकेला ही आया था
अब अकेले ही जाना है
दुनिया की है रीत यहीं सब छूटे
मेरा तेरा कोई नहीं इसे ही निभाना है |
आशा