24 जनवरी, 2023

अन्तराष्ट्रीय बालिका दिवस



है आज अन्तराष्ट्रीय बालिका दिवस

बड़ी प्रसन्नता होती होती यदि केवल कागजों पर न मनाते इसे

जो बड़ी बड़ी बातें करते मंच पर

उनका अमल जीवन में नहीं करते |

 यदि भेद भाव न होता

 सही माने में उसे  मनाया जाता 

बालिकाओं को केवल दूसरे दर्जे का नागरिक न कहा जाता  

उन्हें अपने अधिकारों से वंचित न किया जाता

आज की बड़ी बड़ी बातों को 

 विस्तार से प्रस्तुत किया जाता  

जब सच में देखा जाता 

मन को कष्ट होता यह सब देख

कथनी और करनी में भेद भाव क्यों ?

हमारा प्रारम्भ से ही अनुभब रहा

कितना भेद भाव रहता है

लड़कों और बालिकाओं के लालन पालन में

 हर क्षेत्र में बहुत दुभांत होती है दौनों में  |

हर बार वर्जनाएं सहनी पड़ती है बालिकाओं को

लड़कों को किसी बात पर  रोका टोका नहीं जाता

इसी व्यबहार से  मन को बहुत कष्ट होता है

यदि  सामान व्यबहार किया जाता दौनों में

 ऐसे दिवस मनाने न पड़ते |

लोग अपने बच्चों में भेद न करते

सबसे सामान व्यवहार करते

कथनी और करनी में भेद न होता

क्या आवश्यकता रह जाती बालिकाओं के संरक्षण की

वे भी सामान रूप से जीतीं खुल कर |

आशा सक्सेना 

 

गीत गाओ

 



दिल ने कहा गीत गाओ

 प्यार करो मन को सन्तुष्ट करो 

मेरे सपनों में खो जाओ 

जब भी तुम्हें याद करूं |

मैं कुछ तो तुम्हारी लगती हूँ 

इसे न भूल जाना तुम 

 मेरी जगह किसी को न देना

 यही है मन में मेरे |

मैं नहीं चाहती अपने  

 अधिकार को किसी से बांटना

 तुम मुझे न भूल जाना वजूद है मेरा भी  

 इस को किसी की नजर न लग जाए|

मुझे याद करना मेरे मन में बसे रहना 

 अपने एकाधिकार पर गर्व है

 मुझको यह भ्रम न रह जाए मनोबल न कभी डिगे मनोस्थिती में वही द्रढ़ता रहे 

मैंने कोई गलत निर्णय न लिया हो चाहती हूँ

यही आशा लिए हूँ प्यार लूं प्यार दूं तुम्हें वही 

यही प्रभू से मांगती हूँ मुझे मेरा अधिकार मिले |

 किसी से सांझा नहीं चाहती मन को दुःख न देना 

किसी से बैर मैं  नहीं चाहती 

झूटी आशा न दिलाना मन को न उलझाना

मेरा मन कविता सा है कोरा कागज नहीं है |

आशा सक्सेना

23 जनवरी, 2023

कान्हां का बचपन

 


कान्हां तेरे प्यार में दीवानी हुई गोपियाँ

किसी से कुछ कहा नहीं दौड़ी चली आईं

गोकुल में जमुना तीरे कदम्ब के नीचे

रास रचाने को दिन में स्वप्न देखने को |

जैसे ही मुरली की धुन सुनी वे इतनी हुई मस्त

भूलीं वे क्या काम कर रहीं थी उन्हें अधूरा छोड़

जल्दी से चली आगे बढ़ी आवाज दी कहाँ हो तुम

केवल मुरली की धुन सुना रहे हो  क्यूँ सता रहे हो |

यह तो न्याय नहीं तुम्हारा जो इस तरह रुला रहे हो

 हमने माखन बनाया तुम्हारे लिए चलीं जल भरने को

 न तुम आए न माखन खाया न ही मित्रों को खिलाया

हमने तो एक बार ही शिकायत की थी जशोदा माँ से |

 तुम गलत करो और हम कुछ भी  न कहें

यह कैसा न्याय है तुम्हारा तुम शरारत करते जाओ

हम किसी से शिकायत न करें है कैसा न्याय तुम्हारा

यहीं हम कुछ कर न पाए तुम बच  कर निकल गए |

छलिया बंसी वाले हम से तो बंसी अच्छी है जिसे तुमने

ओठो से लगाया उसको , यही गलत किया तुमने

हम तुम्हारे दीवाने  तुमने न की कृपा हम पर | 

आशा सक्सेना 

22 जनवरी, 2023

इतनी बातें किससे करते

     


इतनी बातें कैसे करते 

किसी से घुले मिले नहीं 

जब भी मन से सोचते 

पाते खुद को बहुत अकेला |

जितनी बार मिलने की सोची 

पाया बहुत अकेला खुद को 

कोई नहीं अपना दिखता 

ना ही अपनापन नजर आता |

दूर दूर तक किसी में |

यही कमी रही मुझमें 

 सामाजिक भी  हो नहीं पाए 

जहां गए वहीं किसी से

 गहरे सम्बन्ध बन न पाए |

पाया अलग थलग खुद को 

किसी से अपने विचार

अकेले थे अकेले ही रहे 

मन से किसी के करीब न हुए 

किसी को अपना न सके  |

यही कमीरही  मुझ में 

सब से अलग करती है मुझे 

अकेले आए थे इस दुनिया में 

अकेले ही जाना है|

यहां कोई  निश्चित स्थान भीं नहीं  

जहां ठहर कर विश्राम कर पाएं  

अपनी थकान मिटा पाएं 

किसी को अपना कह पाएं |

आशा सक्सेना 


21 जनवरी, 2023

क्यों हो उसका उपहास


                                                        तुम याद उसे कब तक करोगे 

क्यूँ   उपहास कराओगे जग में 

कितनी बार समझाया तुम्हें 

यूँही नहीं सताओगे उसको 

हंसना हंसाना अलग बात है 

यह तो वह समझती है 

क्या सही और क्या गलत है 

वह  जानती है इनकार नहीं करती |

 उसे  नहीं है   आवश्यकता

किसी की समझाइश की

अब वह कोई नादाँन नहीं है

 भला बुरा खुद के लिए समझती है |

जितनी बार मिली तुमसे 

उसने तुम्हें अपना माना 

मध्यस्त कोई नहीं चाहिए 

उसके और तुम्हारे बीच |

उसने अनुराग किया था तुमसे 

कोई और न था बीच में 

यही दुःख उसके मन को साल रहा 

वह पहचान न पाई तुमको ||

मुझे बहुत तरस आया उस पर 

तभी मैंने तुमसे अनुरोध किया 

वह कोई खिलोना नहीं जिससे 

खेला और फैक दिया ज़रा समझो | 

मन को बड़ी ठेस लगती है 

इस प्रकार के व्यबहार से 

तुम्ही उसे समझा सकते हो 

मुझे यही कहना है तुमसे |

आशा सक्सेना 



20 जनवरी, 2023

कविता एक गीत

 


                                       कविता का गीत बड़ा मदिर

सब से मीठा सब से मंहगा

गाने के शब्द भी चुन लिए

कोमल भावों को सजाया वहां |

 मधुर धुन उसकी गुनगुनाती

एक आकर्षण में बहती जाती

कलकल कर बहती नदिया सी

लहरों पर स्वरों संगम होता |

यही विशेषता है उन दौनों में

एक ही ताल पर शब्दों का थिरकना

मनभावन रूप में सजाए जाना एक नया

 रूप दिखाई देता गीत जीवंत हो जाता |

आशा सक्सेना    

19 जनवरी, 2023

कायनात वैविध्य लिए


                                                           है वैविध्य लिए कायनात 

पग पग में कुछ नया लिए 

ईश्वर ने रचा यह  संसार 

अद्भुद है किसी से समानता नहीं |

पर एक विशेषता सब में है 

आपस में है  ताल मेल इतना 

सभी यहाँ मिलजुल कर रहते 

बैमिनस्य से दूर रह कर |

|जब भी तकरार किसी में होती

कोई  मध्यस्त रहता सुलह के लिए 

बीच बचाव के किये  यही क्या कम है 

जब भी एक हो जाते चहकते रहते उम्र भर |

सब एक दूसते पर होते आश्रित

 यह दूसरी विशेषता है  सब में 

यह संसार यूँ ही चलता रहता 

ईश्वर के आश्रय में सक्रीय्रा रहता |

कोई कायनात ऎसी न देखी होगी जहां 

आभा  धरती पर  बिखरी होती चारों ओर

चन्दा और तारों की चमकीली ओढनी

 रात में लिपटी होती चारों ओर से ||

और सुबह आदित्य ने ऊर्जा से गोद भरी 

 धरा   हरी भरी दीखती  सजीव हर कौने से 

सुन्दरता उसके जैसी  कहीं नहीं होती 

यही है करिश्मा इस कायनात का |


आशा सक्सेना