25 दिसंबर, 2023

हाइकु(प्यार )

१- किसी की याद 

भूल नहीं पाती हूँ 

कितना  सहूँ 


२-मन में आए 

काँटों सा  चुभ जाए 

मनको खले 


३-प्यार आए 

अबोधों पर  फैले 

मन में छिपे 



४-वह  प्यार है 

या  दिखता  छल है 

मालूम किसे 


५-मन का प्यार 

कोई छलावा नहीं 

सच्चा रहता  


६- मैंने किसी से 

छलावा नहीं किया 

प्यार किया है 

24 दिसंबर, 2023

हैप्पी क्रिसमस

 


                                                       अगला 
 कक्ष सजाया विशेष हमने 

बनाया केक और मिठाइयां

स्वागत में सांता क्लाज के लिए |

आज क्रिसमस  ट्री  लाए 

पेड़ सजाने के लिए खिलोने भी लाए 

बहुत समय हो गया अब है इंतज़ार

उसके आने का और उसके तोहफों  का |

सभी ने सोचा सांता

 क्या लाएगा उनके लिए

गिर्जाघर में प्रार्थना हुई

 सब ने आपस में हैप्पी क्रिसमस कहा |

रात हुई चर्च की घंटी बजी

 आहट किसी  के आने की हुई

 द्वार खोल कर जब  देखा

 पहले जैसा सांता समक्ष ना था

 बहुत कमजोर दिखा |

एक थैला लिए अपने कन्धों पर

 थैला भी  छोटा देख चिंता हुई कारण पूंछा

क्या सांता कम खिलोने  लाए हो

 बच्चों के लिए

सांता ने थैली छोटी होने का कारण बताया

ख़ुशी से  कहा|

राह में कुछ बच्चों से मिले 

उनको दे दिए कुछ 

 बच्चे बहुत खुश हुए

उनकी खुशी देख  सांता भी हुए प्रसन्न |

यह दया भाव  देख उसका  

हमें अपार प्रसन्नता हुई  

जो भी वह लाया हम सब ने मिल कर लिया खुशी से   

हैप्पी क्रिसमास मनाया  |   

आशा सक्सेना           

  

 

23 दिसंबर, 2023

चिलमन की ओट से

 जब भी उसने झांका चिलमन की ओट से 

काली कजरारी आँखों की दृष्टि उस पर पड़ी 

नजर मिली वह  शरमाई  चेहरा सुर्ख हुआ 

देखते ही बनता था उस की मूरत को |

उसकी सूरत तो न देख पाया

 पर छाया से ही संतुष्टि कर पाया 

सुनी चूड़ियों की खनक पायलों की रुनझुन 

अपने बहुत पास तक 

पर हाथों से छू न सका  |

सोचा वह दिन कब आएगा

 जब इन्तजार होगा समाप्त 

प्रिया के हाथ उसकी बाहों में होंगे 

वह  अपने को  धनवान मानेगा |

आशा सक्सेना 


22 दिसंबर, 2023

प्रभु क्या चाहे

 



मेरा प्रभु  चाहे 

महक चन्दन की

खुश्बू पुष्पों की   

सुगंध  मिट्टी  की|

है ईश्वर की नियामत  

यही प्रभू चाहता  

अर्पित  की मैने

ईश्वर है भाव का भूखा

किसी वस्तु का नहीं |

है वक्त पर मददगार

बिना किसी बाध्यता के 

वह सच्ची आस्था को

जानता पहचानता है |

 लगाव हो उससे

कोई नहीं भी मांगे

अपने लिए बिना मांगे

सब प्राप्त होता है |

सच्ची आस्था  

है  आवश्यक  

उसे मनाने को

और कुछ नही चाहिए |

वह खुद ही

जान जाता है

याचक को

क्या चाहिया |

 

आशा सक्सेना

 

19 दिसंबर, 2023

कभी किसी अभाव का हुआ न एहसास


सांस रुकने के पहले शेष काम करना हैं

 कोई कार्य अधूरा ना रहे यही सोचना है 

उन्मुक्त जीवन जिया है अब तक बंधन नहीं चाहिए कोई

 यही है प्रार्थना प्रभू से |

 किसी से क्या चाहिए जबअपनों ने  ही साथ ना  दिया हो

कभी दो शब्द अपनेपन के सुनने को कान तरसे |

हम तो घर से दूर रहे किसी से ना की अपेक्षा कोई

अपने में सक्षम रहे जीवन भरा कठिनाइयों से

सुख के पल देखे जरा से डेरा डाला दुःख ने

 बड़ी उलझने आईं एक बात समझ में आई

सुख के सब साथी होते दुख में  कोई नही होता अपना |

अब घबराने से क्या लाभ होगा जब अकेले ही जीवन भर रहना है

जब तक रहा साथ तुम्हारा जीवन में विविध रंग रहे

कभी किसी अभाव का हुआ ना एहसास 

कोई कार्य अधूरा रहे या नहीं  ना रहे यही सोचना है |

उन्मुक्त जीवन जिया है अब तक

बंधन नहीं चाहिए कोई

 और यही है प्रार्थना प्रभू से |

आशा सक्सेना         

 

यही सोचा दिल से चाहो

 


तुमने की आराधना जब मन से

वह  कृपावन्त हुआ

पर फल की आशा न की जब

अति प्रसन्न हुआ  |

जैसे किसी ने ठीक कहा 

 और मेरे मन ने यह मान लिया 

बिना  मांगे मोती मिलते

मांगे मिले न भीख |

जो सोचो सच्चे मन से चाहो  

प्रभु की नजर पड़ जाए अगर   

वह  हाथ बढ़ाना चाहे

यदि दृढ़ आस्था रही तुम्हारे मन में |

तुम मन से सच्चे रहो  

कोई कमी नहीं छोड़ी तुमने

हुई  कृपा ईश्वर की  तुम पर  

यही दिया तुम्हें खुले हाथ से उसने |

अपना हक़ न समझो इसे तुम

यदि जो मिला उस पर गर्व किया  

यही तुम्हारी भूल समझ कर 

उसने पहली गलती मान

 क्षमा किया तुमको |

कभी करना नहीं गुमान

अपनी किसी प्राप्ती पर 

तुम भी अनजाने में

 उसे याद करते हो दिल से

किसी का बुरा नहीं चाहते

यही विशेषता है तुममें |

तुम हो उसकी पहली पसंद

है वह  मोहित तुम पर

तुम्हारा व्यवहार है सब से जुदा

             हो सब से भिन्न

             सफल रहो जीवन में |

                  आशा सक्सेना 

नौक झोंक


    

 

 

आया सावन का महीना

बाग़ में झूला डलवाया उसने 

अपने भैया से नीम के पेड़ पर 

लकड़ी की पटली रस्सी  मंगवाई बीकानेर से |

खूब ऊंची ऊंची पेंग भरी

 बड़ा आनंद आया झूलने में |

सहेली को लेने आए जीजा जी

वह चली ससुराल खुशी से

वह  देखती रही  राह

 अपने प्रियतम की |

आते ही उल्हाने दिए

 क्यों न याद आई उसकी 

वह  कब से राह देख रही थी 

कैसे भूले राह घर की |

 कुछ दर की नौक झोंक शिकायतें 

फिर मेल मिलाप हुआ धीरे से 

वह जल्दी से तैयार हुई 

अपनी ससुराल जाने के लिए |

आशा सक्सेना