- उस दिन तो बरसात न थीमौसम सुखमय तब भी न लगासब कुछ था पहले ही साफिर मधुर तराना क्यूं न लगा |शायद पहले बंधे हुए थेकच्चे धागों की डोर सेलगती है वह टूटी सीसूखी है हरियाली मन की |सुबह वही और शाम वहीहै रहने का स्थान वहीपर लगता वीराना सारा मंजररहता मन बुझा बुझा सा |यादों की दुनिया से बाहरआने की कशमकश मेंहोती है बहुत घुटनपर है अनियंत्रित मन |मन नहीं चाहताकिसी और बंधन में बंधनाअब फंसना नहीं चाहतादुनियादारी के चक्रव्यूह में|
10 सितंबर, 2011
कशमकश
07 सितंबर, 2011
प्याज क छिलके
आचरण समाज का
है प्याज के छिलके सा
जब तक उससे चिपका रहता
लगता सब कुछ ठीक सा |
हैं अंदर की परतें
समाज में होते परिवर्तन की
प्रतीक लगती हैं
अंदर होते विघटन की |
दिखते सभी बंधे एक सूत्र में
फिर भी छिपते एक दूसरे से
पीठ किसी की फिरते ही
खंजर घुसता पीछे से |
तीव्र गंघ आती है
किसी किसी हिस्से से
यदि काट कर न फेंका उसे
प्रभावित और भी होते जाते |
ये तो हैं अंदर की बातें
बाहर से सब एक दीखते
आवरण से ढके हुए सब
अच्छे प्याज की मिसाल दीखते |
बाह्य परत उतरते ही
स्पष्ट नजर आते
टकराव और बिखराव
उसी संभ्रांत समाज में |
है कितनी समानता
प्याज में और समाज में
छिलके उतरते ही
दौनों एकसे नजर आते |
फिर असली चेहरा नजर आता
खराब होते प्याज का
या विघटित होते समाज का
जैसे ही छीला जाता
आंखें गीली कर जाता |
आशा
05 सितंबर, 2011
हूँ परेशान
न जाने कैसी कहानी थी
कुछ सोचा मनन किया |
वह मन की बात न कह पाई
बस यही गुनाह किया |
यही सोच कर हूँ परेशान
कि ऐसा कैसे किया |
जंगल की आग का अनुभव
उसने कैसे न किया |
हो कर चंचल प्याला छलकता
वह मुखर बनी रहती |
तब कभी उदास न रह पाती
मन पर बोझ न रखती |
कोमल भावनाओं से कभी
यूं न खेलती रहती |
अपने अछूते विचारों पर
सदा विहसती रहती |
04 सितंबर, 2011
शिक्षक दिवस पर कुछ विचार
वह एक ऐसी मशाल है जो जल कर अन्य सब का पथ प्रदर्शन करती है |शिक्षक यदि विद्वान हो और व्यक्तित्व का धनी हो तो अपना ऐसा प्रभाव छोड़ता है कि उसे जीवन पर्यंत भुलाया नहीं जा सकता |
शिक्षक तो जन्म जात होता है जो दुनिया के प्रलोभनों से दूर रह करखुद शिक्षा ग्रहण करता है तथा मुक्त हस्त से
दूसरों को बांटता है |इसे ही अपना लक्ष्य और कर्तव्य मान कर संतुष्ट होता है |शिक्षा का व्यवसाईकरण
करने वाले लोग शिक्षक नहीं हैं केवल व्यवसाई हैं |अच्छा शिक्षक सदा याद किया जाता है |
लीजिए हार्दिक शुभ कामनाएं आज शिक्षक दिवस पर :-
कुछ पंक्तियाँ देखिये शायद अच्छी लगे |
महाकाल की नगरी उज्जैनी
राजा विक्रम की उज्जैनी
द्वापर में थी शिक्षा स्थली
कृष्ण और सुदामा की |
दूर दूर से बच्चे आते थे
गुरु कुल में रह शिक्षा पाते थे
आश्रम था गुरु सांदीपनी का
था नहीं भेद भाव जहां |
ऊच नीच और गरीब अमीर में
अंतर कहीं नहीं दीखता था
था सद भाव और प्रेम इतना
मिल जुल कर रहते थे सब |
लिखते थे जिस पट्टिका पर
धोते थे उसे तलैया में
वह क्षेत्र आज भी
अंक पात कहलाता है
द्वापर की याद दिलाता है |
आशा
02 सितंबर, 2011
कई सौपान
है जीवन का नाम
एक एक सौपान चढना
साथ किसी का मिलते ही
बढ़ने की गति द्रुत होना |
इस दुनिया में आते ही
ममता मई गोद मिलती
माँ के प्यार की दुलार की
अनमोल निधि मिलती |
आते ही किशोरावस्था
कोइ होता आदर्श उसका
अनुकरण कर जिसका
अपना मार्ग प्रशस्त करता |
होती कठिनाई तरुणाई में
फंसता जाता दुनियादारी में
कोल्हू के बैल सा जुता रहता
खुद को स्थापित करने मैं |
यदि भूले से पैर फिसलता
गर्त में गिरता जाता
फिर सम्हल नहीं पाता
फँस कर रह जाता मकड़जाल में |
जीवन के अंतिम सौपान पर
जैसे ही कदम रखता
भूलें जो उससे हुईं
प्रायश्चित उनका करता |
फिर दिया जलाता वर्तिका बढाता
जब स्नेह समाप्त होता
हवा के झोके से लौ तेज होती
फिर भभक कर बुझ जाती |
फिर न कोइ सौपान होता
ऊपर जाने के लिए
उसके जीवन की कहानी
बस यूँ ही समाप्त होती |
आशा
प्रार्थना है
हर वर्ष की तरह इन्तजार तुम्हारा
बहुत किया था
इस वर्ष भी आए अच्छा किया |
तुमसे मिलता बल
हर कार्य सिद्ध करने का
कुछ नया करने का
आ कर मनोबल बढ़ाया
अच्छा किया |
रिद्धि सिद्धि के स्वामी
तुम्हारा आशीष पा कर
जो कुछ भी किया जाता है
शुभ लाभ देख कर
मन सुख पाता है |
पहले की तरह
सुख आए
कामना पूर्ण हो जाए
है यही प्रार्थना आज भी |
सब को सुखी करना
देश के सारे विघ्न हरना
मनो कामना पूर्ण हों
ऐसा आशीष देना |
आशा
01 सितंबर, 2011
कुछ कदम
और कुछ तुम भी चलो
है इतनी लम्बी डगर
फासले कुछ तो कम होंगे |
तुम्हारी ये नादानियां
जी का जंजाल हों गईं
समझौता विचारों में
किस तरह हों पाएगा |
यदि चल पाए दौनों
चार कदम भी साथ साथ
जिन्दगी का बुरा हाल
ऐसा न हों पाएगा |
जब भी वह झुके
और तुम ना झुक पाओ
बनती बात बिगड़ जाएगी
फिर कुछ भी न हों पाएगा |
आशा