23 दिसंबर, 2014

आँखें




 
   झील सी गहराई है 
                                                                           लुनाई अनुपम लिए                                                                                       
कजरे की धार उनमें
बस एक बार जो डूबा उनमें
बापिस नहीं आता
बंधन है ही ऐसा
मुक्त न हो पाता
उस राह पर
चल कर तो देखो
लौटना होगा असंभव
बंधन अटूट 
राह भुला देगा
वहीं ठहर जाओगे
यह खता नहीं उनकी
कारण तुम्ही बनोगे
हो जाओगे अभिभूत इतने
बाहर की राह भूल जाओगे
वे झील सी गहरी हैं
वहां से लौट न पाओगे |
आशा


21 दिसंबर, 2014

एक सर्द रात




रात चांदनी महकी रात रानी
उस बाग़ में
तर्क कुतर्क बहस बेबात की
सोने न देती
दीखता नहीं हाथों को हाथ यहाँ
छाया कोहरा
फैला कुहासा सो गई कायनात
आँखें न खुलीं
जाड़े की रात कहर बरपाती
रुकी जिन्दगी
एहसास है निर्धन बालक को
है सर्दी क्या
जला अलाव आतेजाते अपने
हाथ सेकता 
बर्फ बारी में  ठंडक से हारा है 
जीत न पाया 
ठण्ड की रात वर्षा बेमौसम की 
कुल्फी जमाती |
आशा


19 दिसंबर, 2014

वाणी


पैनी कटार
विष रस से भरी
जिव्हा ही थी |

कभी सोचना
कितना दुःख देता
कटु भाषण |

है राम बाण
संयम वाणी का
देता सुकून |

बोल मधुर
वाणी पर संयम
तभी सफल |

शब्द चयन
कितना आवश्यक
सब जानते |


अर्थ अनर्थ
शब्दों का होता खेल
रखें संयम |

आशा
·

17 दिसंबर, 2014

है बदला सर्वोपरी



है मन उदास अशांत
सोच हावी है
सुबह से शाम तक
है जंग विचारों की
बच्चे तो बच्चे हैं
 काले हों या गोर
इस देश के या उस देश के
कैसा कहर वरपाया
मासूम   नौनिहालों पर
इंसानियत होती है क्या
शायद नहीं जानते
दीन  ईमान कुछ भी नहीं
है बदला सर्वोपरी
दहशतगर्दों के लिए
एक बार भी नहीं सोचा
क्या बिगाड़ा था बच्चों ने
यह कौन सी मिसाल
 कायम की है
बदले की भावना की
यदि यह हादसा पहुंचता
उनके खुद के बालकों तक
तब भी क्या यही
प्रतिक्रया होती
है बदला सर्वोपरी |
आशा