13 दिसंबर, 2015

असलियत भूल गए

सुर्खाब के लिए चित्र परिणाम
ऐसे सुर्खाव के पर लगे
जमीन पर पैर न टिके
असलियत भूल गए अपनी
आसमाँ छूने को चले
कुछ पल भी न गुजर पाए
खुद पर गुरूर आये
उड़ान भूल कर अपनी
जमीं पर मुंह के बल गिरे
मां की शिक्षा याद आई
अपनी सीमा मत भूलो
जितनी बड़ी चादर हो
उतने ही पैर पसारो |
आशा

11 दिसंबर, 2015

दूसरी चादर


जलता अलाव के लिए चित्र परिणाम
कचरे का जलता ढेर देख
मन ही मन वह  मुस्काया
क्यूं न हाथ सेके जाएं
सर्दी से मुक्ति पाएं
अपनी फटी चादर ओढ़
वहीं अपना डेरा जमाया
हाथों को बाहर निकाला
गर्मी का अहसास जगा
अचानक एक चिंगारी ने  
चादर पर हमला बोला
जाने कब सुलगाने लगी 
पता तक न चला  
अहसास तब जागा जब
 जलने की छुका वार 
  अधनंगे पैरों पर हुआ
 भयभीत हो वह चिल्लाया
उसे दूर छिटक कर भागा
आवाज थी इतनी बुलंद
हाथ से छूटा चाय का प्याला
हुआ स्तब्ध एक क्षण के लिए
गरीबी की  हंसी उड़ाने वाला
फिर दुबका अपनी रजाई में  
मंहगाई के इस दौर में
गरीब की आँखें भर आईं
ठण्ड से बचाव का
अंतिम साधन भी जल गया
थी फटी तो क्या
कुछ तो बचाव होता था
 अब कौन उसका बचाव करेगा
ऐसा रहनुमा कहाँ मिलेगा
जो दूसरी चादर देगा |
आशा

09 दिसंबर, 2015

अति वृष्टि का कहर


 चेन्नई में मंजर बारिश का के लिए चित्र परिणाम
नम आँखों से पहली बार
देखी धधकती आग  समीप से
सब स्वाह हुआ क्षण भर में
श्यमशान बैराज्ञ जागृत हुआ
जीवन से  मोह भंग हुआ
 देखा जब समुन्दर पहली बार
 था असीम विस्तार सका
कोई ओर न छोर
तट पर बिखरे  सिक्ता कण
देखा आवागमन उर्मियों का
फिर भी भय न हुआ
सुनामी ने कहर बरपाया
जन हानि ने भयभीत किया
मन को अस्थिर किया
समय लगा स्थिर होने में
दिन बदले मौसम बदला
प्रकृति ने भयावय रूप दिखाया
अति वृष्टि कैसी होती है
उसका सत्य समक्ष आया
सोया था गहरी नींद में
थी बहुत बारिश
अचानक नीद से जागा
खुद को बहुत अकेला पाया
चारो ओर था जल ही जल 
कोई नजर न आया
था बाढ़ का दृश्य  भयानक
सारा शहर जलमग्न हुआ
तब जान लगी बहुत प्यारी 
प्रभु की याद सताई
गुहार बचाव के लिए लगाई
मिलिट्री ट्रक ने बाहर निकाला
वही लगा अंतिम सहारा
जब तक घर ना आया
अधर में साँसें अटकी रहीं
पहले सा दृश्य फिर से दिखा
मन में भय समाया |
आशा