27 अगस्त, 2015

राखियाँ


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गली के उस पार
सजी राखियों की दूकान
एक नहीं अनेक राखियां
छोटी बड़ी अनेक राखियाँ
बहन की अरमां राखियाँ
रंगबिरंगी बहुरंगी राखियाँ
कलाई का सिंगार राखियाँ
सजने को तैयार राखियाँ
कलाई सूनी भाई की
राह देखती बहना की
स्नेह का बंधन अटूट
रक्षक सूत्र  सदा अनमोल
ये कच्चे धागे की राखियाँ
मन मोहक सुभग सुन्दर
बहनों का दुलार मनुहार
भाई के वादों का उपहार
घेवर फैनी का अम्बार
आया रक्षाबंधन त्यौहार
अपूर्व चमक आनन पर होती
जब कलाई पर राखी होती
बहन दुआएं देती
है अदभुद यह त्यौहार
रस्मों कसमों का त्यौहार
रहता हर वर्ष इन्तजार  
कब दूकान पर राखियाँ सजें
उनमें बहना का प्यार पले |
आशा

मेरा सातवा काव्य संग्रह "काव्य सुधा "

25 अगस्त, 2015

तुम्हारे बिना

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सजी महफ़िल
गीत गुनगुनाए
इन्तजार हर पल  रहा
पर तुम न आए
यदि एक झलक
तुम्हारी पाते
स्वर अधिक
मधुर हो जाते
महफ़िल में
रंग जमाते
लव प्यासे
न रह जाते
यूं ही महफ़िलें
सजती रहेंगी
बहारें आती रहेंगी 

जाती रहेंगी
पर अधूरे  रहेंगे
मेरे गीत
तुम्हारे बिना |
आशा

23 अगस्त, 2015

कहानी होकर रह गई

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बैठी उदास
गुमसुम गुमसुम
बहाती नीर
नयनों से छमछम
संयम न रख पाती
खुद पर
वेदना अंतस की
किसे बताए
कोई प्यार नहीं करता
उसे स्वीकार नहीं करता
जीने की चाह
हुई कमतर
वह झुकी
रेलिंग पर इतनी
सम्हल न सकी
नीचे गिरी
साँसें पलायन कर गईं
और जीवन लीला 
 इस लोक  की
समाप्त हो गई
वह कहानी
हो कर रह गई
आशा

22 अगस्त, 2015

बाल लीला


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खिड़की खुली थी किया प्रवेश वहीं से
द्वार खुला था उधर से  न आये
क्या बिल्ली से सीख ली थी
या नक़ल उसकी की थी |
छलांग लगा छींका गिराया
मटकी फोड़ दही गिराया
कुछ खाया कुछ बिखराया
पकडे गए तब रोना आया |
अकारण शोर मचाया
 सब को धमकाया
चलो आज  माँ के पास
न्याय मैं करवा कर रहूंगी
प्रति दिन यह शरारत न सहूंगी |
वह भोली नहीं जानती
 है व्यर्थ शिकायत
माँ कान्हां को नहीं मारती
डंडी से यूं ही धमकाती
फिर ममता से आँचल में  छिपाती |
 है कान्हां भी कम नहीं
कहता माँ यह है झूठी
इसकी बातें नहीं सुनो
तुम मेरा विश्वास करो |
अब वह जान गई है  
कोई प्रभाव न होना नटखट पर
बालक है भोला भाला
मनमोहक अदाओं वाला |
यही है बाल लीला कान्हां की
मृदु मुस्कान मुख पर उसकी
सारा क्रोध बहा ले जाती
,वह जमुना जल सी हो जाती |
आशा