22 सितंबर, 2015

बाई पुराण


आदत से महबूर है  ,बाई बहुत उस्ताद |
रोकाटोकी रोज की ,लगती नई न आज ||

रोजाना बहस बाजी ,उससे सहन न होय |
बाई है तो क्या हुआ ,अपना ज्ञान न  खोय ||

सभी सवाल का जबाब ,एक भी नहीं उधार |
 शब्द वाण थे बेमिसाल, बार बार किये प्रहार ||

हुआ टोटा बाई का ,मानो पड़ा अकाल |
सातों जाती कार्यरत ,फिर भी ना निस्तार ||

महरी माई ना करो ,करो हाथ से काम |
अति आलस्य की हुई ,अच्छा नहीं विश्राम ||

सुख शान्ति की खोज में ,ना हो यूं हलकान
बाई है या मुसीबत ,यही सत्य पहचान ||

मुसीबत झेलना पड़े ,नहीं कोई उपाय |
जिसको आना हो आये ,बाई छोड़ न जाय ||

आशा

20 सितंबर, 2015

कल्पना


हर अदा तेरी
अधिक समीप लाती
तू ही तू नज़र आती
स्वप्नों में सताती |
जुम्बिश अलकों की
कशिश खंजन नयनों की
छिपा लूं अपने मन में
सहेजूँ ये पल दिल में
सुर्ख लाल अधर तेरे
मुस्कुराते ध्यान खीचते
मीठे बैन उनसे झरते
मन में राह बनाते 
अंतस में पैंठ जाते 
मंथर गति से तेरा चलना
आँचल  का हवा में उड़ना
उसे सम्हालने की कोशिश में
चूड़ियों का खनकना
सुनने को मन करता
चूड़ियों की खनक हाथों में
पायल सजती पैरों में 
हिना की महक
महावरी रंग की झलक
तुझे और समीप लाती
दिल से दिल की राह दीखती
तेरी जुल्फ़ों के साए में
तनिक ठहर जाऊं अगर
तुझसे कुछ न चाहूँ
तेरा हो कर रह जाऊं
सुबह शाम तुझसे हो
रात सजे  तेरे स्वप्नों से
है मेरे लिए तू क्या
यह कैसे तुझे बताऊँ |
आशा

18 सितंबर, 2015

भाव



भाव का अविर्भाव
ऐसे ही नहीं होता
बहुत जतन  करने होते हैं
तभी निखार आता
सर्वप्रथम उसका शोधन
फिर प्रक्षालन परिवर्धन
और अंत में परिमार्जन
इतनी विपदा सहते सहते
मूल भाव तिरोहित होता
परिवर्तन इतने हो जाते
नया ही कुछ प्रगट होता
मनभावन प्रस्तुति होती
पर मूल भाव रह जाता
 किसी कौने में सिमट कर
विश्वास नहीं होता  
जो सोचा न था
 वही लिखा था |
आशा