09 दिसंबर, 2015

अति वृष्टि का कहर


 चेन्नई में मंजर बारिश का के लिए चित्र परिणाम
नम आँखों से पहली बार
देखी धधकती आग  समीप से
सब स्वाह हुआ क्षण भर में
श्यमशान बैराज्ञ जागृत हुआ
जीवन से  मोह भंग हुआ
 देखा जब समुन्दर पहली बार
 था असीम विस्तार सका
कोई ओर न छोर
तट पर बिखरे  सिक्ता कण
देखा आवागमन उर्मियों का
फिर भी भय न हुआ
सुनामी ने कहर बरपाया
जन हानि ने भयभीत किया
मन को अस्थिर किया
समय लगा स्थिर होने में
दिन बदले मौसम बदला
प्रकृति ने भयावय रूप दिखाया
अति वृष्टि कैसी होती है
उसका सत्य समक्ष आया
सोया था गहरी नींद में
थी बहुत बारिश
अचानक नीद से जागा
खुद को बहुत अकेला पाया
चारो ओर था जल ही जल 
कोई नजर न आया
था बाढ़ का दृश्य  भयानक
सारा शहर जलमग्न हुआ
तब जान लगी बहुत प्यारी 
प्रभु की याद सताई
गुहार बचाव के लिए लगाई
मिलिट्री ट्रक ने बाहर निकाला
वही लगा अंतिम सहारा
जब तक घर ना आया
अधर में साँसें अटकी रहीं
पहले सा दृश्य फिर से दिखा
मन में भय समाया |
आशा  
  

05 दिसंबर, 2015

बचपन कान्हां का


बचपन कान्हा का के लिए चित्र परिणाम
बाल सुलभ चापल्य तेरा
ऐसा मन में समाता
बालक के निश्छल मन का
हर पल अहसास दिलाता
कान्हां तू कितना चंचल
एक जगह रुक न पाता
सारे धर में धूम मचाता
मन चाहा  करवाता
तू मां की   आँख का तारा
 हो गया सभी  का दुलारा
मां की ममता का तू संबल
तन मन तुझ पर सबने वारा
किया पूतना वध 
 कष्टों से गोकुल को  उबारा 
जमुना तीरे कदम तले
धेनु चराई रास रचाया
केशर संग होली खेली
की गोपियों से ठिठोली
गलियों में धूम मचाई
राधा भी बच न पाई
पानी  सर से ऊपर हुआ 
शिकायतों का अम्बार लगा
गुजरियों की शिकायत पर
मां को बातों में बहकाया 
यशोदा मां बलाएं लेती 
कान्हां को कुछ न कहतीं
यही सभी से कहती
कान्हां मेरा भोलाभाला 
उसने कुछ न किया  
कैसे हो गुणगान तेरा 
शब्द नहीं मिलते 
मन में भाव घुमड़ते रहते
तुझ में खोए रहते |
  
शब्द