15 सितंबर, 2016
13 सितंबर, 2016
चुभन
उलझनों की अति हो गई
बोझ मन का कैसे हल्का हो
कहने को शब्द नहीं मिलते
मुंह तक आते आते ही
बेआवाज होते जाते हैं
अब तो लगाने लगा है
ताला जवां पर लग गया है
अब कुछ किसी से नहीं कहना
फ़कत उलझनों का
एहसास ही काफी है
यही एहसास जब तब
शूल सा चुभने लगता है
जिसे निकाल फेंका पहले ही
पर आज भी चुभन होती है
अब तो अंतराल में होती
खलिश का एहसास ही काफ़ी है |
आशा
09 सितंबर, 2016
08 सितंबर, 2016
भाग्य उसका
बर्फ में दफन हुआ था
भाग्य ने उसे बचाया
पर साँसें थी गिनती की
उसकी जिन्दगी की
चमत्कार हुआ वह बचा
पर कुछ पल ही रह पाया
सभी यत्न असफल रहे
जीवन पुनः देने के
यह भाग्य न था
तो और क्या था
शहादत देने वालों में
एक नाम और जुड़ गया |
आशा
आशा
05 सितंबर, 2016
गुरू शिष्य
योग्य धनुर्धर होने को
हो पूर्ण ध्यान निशाने पर
लक्ष्य भेदन तभी संभव
जब एकाग्र हो मन निरंतर
शिक्षा थी गुरू की यही
स्वीकार जिसे शिद्दत से किया
ध्यान तभी केन्द्रित हुआ
तीर निशाने पर लगा
है अति विशिष्ट
गुरू शिष्य का नाता
काल पुरातन से आज तक
कोई भ्रमित न इससे हुआ
जैसे पहले महत्त्व था इसका
आज भी वह कम न हुआ
|शिक्षा जिससे भी मिले
शिरोधार्य शिष्य करे
तभी पूर्णता का भास् हो
शिष्य का विकास हो |
आशा
02 सितंबर, 2016
क्षणिकाएं
१
रूप खिले कमल के फूल सा
महकता तन मन संदल सा
गाता गुनगुनाता सुनता सुनाता
चहकता स्वर उपवन में पंछी सा ।
२
बरसों के बिछुड़े अब मिले
तब जा कर दिल से दिल जुड़े
मनवा बेचैन कुछ कहे न कहे
आँखें तरस गईं थीं बिना मिले ।
३
प्रातः बेला में खिली कुमुदनी
यही उसे जीवंत बनाती
मीठी सी मुस्कान लिए
बधाइयों की झाड़ी लगाती |
३
प्रातः बेला में खिली कुमुदनी
यही उसे जीवंत बनाती
मीठी सी मुस्कान लिए
बधाइयों की झाड़ी लगाती |
आशा
31 अगस्त, 2016
एक अफ़साना
एक अफसाना सुनाया आपने
गहराई तक पैठ गया मन में
जब पास बुलाया आपने
थमता सा पाया उस पल को
कसक शब्दों की आपके
वर्षों तक बेचैन करती रही
जब भी भुलाना चाहा उसे
तीव्रता उसकी बढ़ती गई
जो दीप जलाया था मन मंदिर में
झोंका हवा का सह न सका
तीव्रता बाती की बढ़ी
लौ कपकपाई और बुझ गई
प्रतिक्रया अफसाने की
आखिर किससे सांझा करती
आखिर किससे सांझा करती
आप से कुछ कह न सकी
मन की मन में रह गई |
आशा
मन की मन में रह गई |
आशा
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