07 दिसंबर, 2016

आखिर कब तक



अर्श से फर्श तक
बन सी गई कच्ची सड़क
 है अंतहीन काँटों से भरी
न जाने जाएगी कहाँ तक
फिर भी भरी है
आकांक्षाओं से
जगह जगह राहों में
छोटे बड़े ठेले लगे हैं
कहीं कहीं मेले भी हैं 
चाहे जब इच्छाएं 
सर उठाने लगती हैं
कहीं हैं विश्राम गृह
रुक जाने का भी
 मन होता है
पर मन  असंतुष्ट
कुछ करने नहीं देता
उसकी कातरता देख
 दारुण दुःख होता
यही बड़ी समस्या है
उलझन युक्त मन की
विलुप्त होती खुशियाँ
सिमटने लगतीं
भार जिन्दगी लगती
भटकती यहाँ वहां
मुक्ति की तलाश में
है व्यर्थ यह भी सोचना
अन्धकार में हाथ मारना
अनजाने मार्ग पर  चल कर
उसपार पहुँचाने की कल्पना
तक अधर में लटक जाती
कभी माया कदम रोकती
तभी सुकून से दूरी होती
आखिर कब तक झूलना होगा
इस जन्म मरण के झूले पर
कब पार हो पाएगी 
वह अंतहीन कच्ची डगर |

आशा

04 दिसंबर, 2016

महिमा कार्य की




न बड़ा न कोई छोटा 

काम तो बस काम है

काम को ऐसे न टालो

जीवन में  इसे उतारलो

है यह प्रमुख

अंग  जीवन का
 

जिसके बिना 

वह रह जाता अधूरा 
 
एक विकलांग प्राणी सा 

मानव जीवन 

कार्य से ही पूर्ण होता
 
व्यस्त सदा बना रहता

कार्य यदि उपयोगी होता

जीवन सफल हो पाता

उससे मिली प्रशंसा से 

वह पूर्णता को प्राप्त होता 

और  सकारथ हो पाता.

आशा
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Asha Lata Saxena


03 दिसंबर, 2016

बाई पुराण


बाई मेरे तुम्हारे बीच
बड़ा पुराना रिश्ता था
पैसे से न तोला जिसे
 बच्चे तक लगाव  रखते थे तुमसे 
शायद तब शरीर सक्षम था मेरा 
मैं तुम पर आश्रित न थी
जब भी कोई मेहमान आता
तुम अपना फर्ज निभाती थीं
पूरे मनोयोग से काम करतीं 
उनका दिल जीत ले जातीं थीं
मैंने कभी न तुम से पूंछा
क्या तुमने उनसे पाया
मैंने तो पूरी शिद्दत से
अपना फर्ज निभाया
जब जब तुमने छुट्टी चाही
अवमानना न की तुम्हारी
पर अचानक एक दिन
 तुम में बड़ा परिवर्तन आया
तुम अधिक ही सचेत हो गईं
अपने अधिकार रोज गिनातीं
कर्तव्य अपने भूल गईं
हर बात पर अपनी तुलना
मुझसे करने लगीं
कर्तव्य और अधिकारों की खाई
अधिक गहरी होने लगी
पर अब अधिकारों के गीत
मुझे प्रभावित नहीं कर पाते
मैं असलियत की तह  तक
 पहुँच गई हूँ
उम्र के इस पड़ाव पर
निर्भरता जब से बढ़ी है
तुम मुझ पर हावी हो गई हो
अब भावनात्मक लगाव हुआ  गौण
है प्रधान पैसा तुम्हारे लिए
एक और बात मैंने देखी है
 तुम हो असंतुष्ट अपने जीवन से 
तभी उल्हाने तानेबाजी 
आएदिन होती रहती है 
है पैसा प्रधान तुम्हारे लिए 
संवेदना विहीन अब हो गई हो |

आशा





30 नवंबर, 2016

शत शत नमन

भारत माता के सच्चे सपूत
देश के रखवाले
तुम्हें शत शत नमन
दिन रात सुरक्षा
सीमा की करते
उत्साह क्षीण न होने देते
तुम्हें मेरा प्रणाम
वह मां है बहुत भाग्यशाली
जिसने जन्म दिया
तुम जैसे वीर सपूत को
उसे शत शत नमन
तुम्हारी वीरता के चर्चे
पूरा देश कर रहा
जाती धर्म वर्ग से हटकर
वीरता के चर्चे कर रहा
तुम्हें शत शत नमन
देश है हमारा
उसके लिए जियेंगे
उसके लिए ही
जान न्योछावर करेंगे
यही जज्बा यही शक्ति
मन में धारण करने वाले
देश के रक्षक
तुम्हें मेरा सलाम |

07 अक्तूबर, 2016

बहार


आ जाती है बहार
उसके आने से
बगिया में खिलते फूल
इसी बहाने से
भ्रमर गुंजन करने लगते
खिलते फूल देख
तितलियाँ रंगबिरंगी
गाती तराने
उसके शबनमी एहसास से
उदासी छाने लगती
उसके जाने से
रंग फ़िजा का
बदलने लगता
उसके रूठ जाने से
खुशियों का पिटारा खुलता
उसके मन जाने से
आजाती बहार फिर से
उसके लौट आने से | |
आशा

06 अक्तूबर, 2016

समय रेत सा


काल चक्र
चलता जाता
कभी न थकता
कभी न रुकता
हाथों से दूर
होता जाता
उसे पकड़
कर रखना
असंभव सा
प्रतीत होता
वह लगता
उस रेत सा
जिसे कैद किया
मुठ्ठी में
सोचा अब
कहाँ जाएगी
पर वह
टिक नहीं पाई
धीरे धीरे
खिरने लगी
मुठ्ठी खाली हो गई
भ्रम मन में ना रहा
समय को पकड़ना
नहीं सरल
वह तो रेत सा
फिसलता है
टिका नहीं रहता |
आशा

05 अक्तूबर, 2016

बरसात के मौसम में



बहता जल 
छोटा सा पुल उस पर
 छाई  हरियाली 
चहु ओर 
पुष्प खिले बहुरंगे 
मन को रिझाएँ 
उसे बांधना चाहें 
लकड़ी का पुल
 जोड़ता स्रोत के
 दोनो किनारों को 
हरीतिमा जोड़ती 
मन से मन को 
आसमा में स्याह बादल 
हुआ शाम का धुंधलका
समा सूर्यास्त होने का 
ऐसे प्यारे मौसम में 
मन लिखने का होय |
आशा