10 अक्तूबर, 2018

उलझन







ज़िन्दगी की तंग गलियों में
पग धरते ही उलझने ही उलझने
जब तब शूल सी चुभतीं हैं
कर देती हैं लहूूलुुहान पैरों को
छलनी तन मन को
एक समस्या हल न होती
दूसरी मुँँह फाड़ हो जाती उपस्थित
धीरे धीरे आदत हो जाती
उलझनों के साथ जीने की
बीच में गत्यावरोध अवश्य
सहन करने होते
कभी मन असंतुष्ट होता
ऐसी क्या जिन्दगी
कभी प्रसन्न न हो पाते
पर हिम्मत नहीं हारते
समस्याओं का 
कभी तो अंत होगा
रोज़-रोज़ की उलझनों से
छुटकारा मिलेगा |

आशा

07 अक्तूबर, 2018

विपरीत विचारों में होता आकर्षण

नभ में छाई काली घटा
दो बादल आए
आपस में मिले टकराए
गर्जन तर्जन किया
बिजली कड़की
बनी गवाह दौनों के बीच
विपरीत विचारों में
होता आकर्षण
वही हाल हमारा है
कहने को तो मन नहीं मिलते
पर जितनी भी दूरी बनाओगे
हम उतने नजदीक होते जाएंगे
तुम्हारी बेवफाई का सिला
हम दम वफा से देंगे |
आशा

05 अक्तूबर, 2018

सर्वोच्च राष्ट्रधर्म


सर्वोच्च राष्ट्र धर्म -
धर्म पर सियासत करना
शर्म की बात नहीं है तो और क्या
धर्म एक भावना है जो व्यक्तिगत
इस पर बार बार बहस बिना बात
क्या शोभा देती है ?शर्म आती है
जब भी चुनाव आते हैं
 कछुए की गर्दन
बाहर निकल आती है |
खूनखराबा आए दिन का
 होता अशोभनीय
सौहाद्र और भाई चारा कहीं खो जाता
मरने मारने पर इंसान उतर आता
सोच कहीं गुम हो जाता
जहां रहते हैं वही हमारा धर्म |
यहीं मात खा जाते हैं
भूल जाते है राष्ट्र धर्महै सर्वोपरी
और हमारा है सच्चा धर्म |
आशा

03 अक्तूबर, 2018

हौसला





हर कोशिश बेकार हो गई
फिर भी हिम्मत ना हारी 
हौसला बुलंद रखने वाले
 कर सकते हैं सब कुछ
सुना था किसी के मुँँह से !
हौसला फिर बनाया मन में
प्रारम्भ किया वही कार्य
जैसे चींटी चढ़ सकती पहाड़ पर
यदि मन में हो आत्म विश्वास
हौसला हो गया बुलंद
कार्य करने की लगन लिए  
उसे पूर्ण करके ही रहूँँगी
हौसला अकेला नहीं होता
होते है साथ उसके आत्मविश्वास
दृढ़ संकल्प और लगन
सफलता कदम चूमेगी
जब फल की प्राप्ति होगी |


आशा 

29 सितंबर, 2018

मतलबी

न्यूज़ फ़ीड

आज की दुनिया में
मतलबियों की दूकान लगी है
हैं इतने मतलबी कि
 मतलब निकल गया तो
पहचानते नहीं |

बहुत से तो एसे है कि
 उनका रुख समझना नामुमकिन
ज्यादा ही सयाने हैं
 बनते बहुत चतुर बहुत ही  |
पोस्ट प्रबंधित करें
सूची दृश्य
23 घंटे · 
घरमेंसेवा कभी न की

    घर में सेवा कभी न की
    अब ढोते हो दूसरों को
    कंधे पर कावड़ टांग कर
    यह कहाँ का है न्याय|

    घर से ही आरम्भ करो
    परमार्थकी प्रक्रिया
    तभी सफल हो पाएगी
    जीवन की अभिलाषा |

    लगा दाव पर सम्मान
    मन को झझकोर रहा है
    दुविधा है चुनने की
    स्वहित या पर हित की|

    सोच समझ पर है भारी
    क्या करे अवला बेचारी
    इस पार कुआ है
    तो उस पार है खाई |



    आशा

26 सितंबर, 2018

रंगों का तालमेल




दिल से दिल की
थाली सजाई है बड़े चाव से
कोई रंग ऐसा नहीं
जो सहेजा न गया  हो उसमें
सभी रंगों से प्रकृति को
सजाना है मुझे |
तभी यत्न सफल होंगे
जब रंग भरी कूची
लिपटेगी और घूमेंगी
खाली केनवास पर
जो छवि उभर कर आएगी
मन पर छा जाएगी
मन मयूर मगन हो कर
नाचने लगेगा |
कण कण बोलेगा 
अपने रंग में रंग कर 
सृष्टि दिखेगी नवयौवना सी
अभिनव छवि बनेगी 
जो अविराम दिल में
घर करती रहेगी
दृष्टि पटल लबरेज़ होगा 
नवीन रंगों के प्रयोग से |



आशा