30 जून, 2019

भवसागर में अकेली



मै एकाकी नौका पर सवार
खेलती लहरों के साथ
उत्तंग लहरों का संग
बहुत आकृष्ट करता था
जब अवसर हाथ आया
रोक न पाई खुद को
अकेले ही चल दी
बिना किसी को साथ लिये
तट छूटा तब भय न लगा
पर मध्य में आते ही
बह चली लहरों के संग
जाने कितनी दूर निकल आई
कब किनारे पर पहुंचूंगी
सोच न पाई
लिये प्रश्नों का अम्बार मन में
ज्वार सा उठाने लगा
कभी निराशा हावी होती
 फिर आशा का होता आभास
न जाने कया होगा ?
आई थी अकेली
 जाना भी है अकेले
कोई नहीं है साथ
सोच किस बात का
जो होगा देखा जाएगा
कभी तो किनारा मिलेगा
भवसागर पार हो जाएगा |
आशा

27 जून, 2019

स्वागत वर्षा का


बूँदें बारिश की 
टपटप टपकतीं
  झरझर झरतीं
धरती तरवतर होती
गिले शिकवे भूल जाती |
हरा लिवास  पहन ललनाएं
कई रंग जीवन में भरतीं 
हाथों में मेंहदी रचातीं
मायके को याद करतीं |
सावन की घटाएं छाईं 
आसमान हुआ  स्याह
पंछियों ने गीत गाया
गुनगुनाने का जी चाहा   |
झिमिर झिमिर वृष्टि जल की
ताप सृष्टि का हरती
वर्षा की नन्हीं बूंदें 
 थिरकती नाचतीं  किशलयों पर|
वे हिलते डुलते मरमरी धुन करते
हो सराबोर जल 
  नृत्य में सहयोग करते
आनंद  चौगुना करते |
नहाती बच्चों की  टोली वर्षा में
 है  यही आनंद वर्षा में नहाने का
सृष्टि के सान्निध्य का |