02 मई, 2020

कच्ची सड़क







है दूर तक कच्ची सड़क
पटी हुई पीले पत्तों से
जो भी चलता उस पर
पीले पत्ते गीत गाते गुनगुनाते|
चर चर की  ध्वनि करते
पैरों तले रोंधे जाते
तेज हवा के साथ उड़ते
 पर शिकायत नहीं करते|
सूर्य रश्मियाँ नभ  से झाँकतीं
पगडंडी को नया रूप देतीं
पेड़ों पर आए नव पल्लव
प्रातः काल की  धूप में नहाते
अलग ही नजर आते हरे भरे मखमल से |
प्रातः काल का यह मंजर
आँखों में बस गया  ऐसा
जब भी पलकें बंद होतीं
मन उसी सड़क पर विचरण करता |
कहीं भी जाने का मन न होता
स्वप्न में भी उसी में रमा रहता
स्वप्नों में उसका स्थान हुआ ऐसा
कोई सपना पूरा नहीं होता उसके बिना |
घूमते कदम स्वतः ही उठ् जाते उस ओर
अब तो हो गई  है वह सड़क
एक अहम् स्थान  स्वप्नों को सजाने की 
उसके बिना अधूरा रहता हर सपना |
आशा

30 अप्रैल, 2020

है दूर बहुत मेरा धर




है दूर बहुत मेरा गांव
रोजी रोटी के लिए
निकला था घर से
अब पहुँचने को तरसा
फँस कर रह गया हूँ
 महांमारी के चक्र व्यूह में
जाने अब क्या होगा
कब अपने गाँव पहुंचूंगा
अपने परिवार से मिलूंगा
मिल भी  पाऊंगा या नहीं
या ऐसे ही दुनिया छोड़ जाऊंगा
 पसोपेश में फंसा हुआ हूँ
 जाऊं या यहीं ठहरूं
कभी तो मन होता है
भगवान भरोसे सब को छोड़ दूं
कोई भी प्रयत्न है निरर्थक
फिर मन में कभी
 आशा जन्म लेती है
हार किसी से क्यों  मानूं ?
जब तक जियूं जैसे जियूं
 आशा का दामन थामें रहूँ
ईश्वर पर आस्था सदा रहे  
कर्मठ हूँ विश्वास मन का बना रहे
 कभी  ना छोडूं साथ आस्था का
जैसी भी परिस्थिति हो
उनका सामना करू |

आशा