10 अक्तूबर, 2020

क्या कहने तुम्हारे वजूद के

 

क्या कहने तुम्हारे वजूद के
कभी एहसास ही नहीं होता
तुम्हारे अस्तित्व का
कहाँ गुम हो जाती हो
हलकी सी झलक दिखला कर |
समझ में नहीं आता तुम्हारा इरादा
यह कोई चुपाछाई का खेल नहीं है
हम अब बड़े होगए हैं
छोटे बच्चे नहीं है |
रहना है साथ बंधन से बंधे हैं
है तो कच्चे धागों का
पर मजबूती लिए है
समाज है गवाह इस बंधन का |
ऐसा प्यारा बंधन तुम्हें
क्यूँ रास नहीं आया
मुझे एहसास है बड़ा प्यारा
जीवन में नियामत सा मिला है |
तुम नहीं तो कुछ भी नहीं है
जीवन की रंगीनियों की
एक झलक भी दिल खुश कर देती है
तुम्हारी भीनी भीनी महक
मन खुशी से भर देती है |
आशा  
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तलाश खुशी की - हर समय की उदासी कैसे कोई सहन कर पाए जीवन में कुछ भी नहीं है जो वह कुछ भी सहन ना कर पाए | जितनी भी कोशिश...
Bankebihari Ojhà and Aditya Srivastava
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09 अक्तूबर, 2020

तलाश खुशी की

 

 


                                           तलाश खुशी की
है 

हर समय की उदासी कैसे कोई सहन  कर पाए

जीवन में कुछ भी नहीं है

जो वह  कुछ भी सहन ना कर पाए |

जितनी भी कोशिश की सभी व्यर्थ नजर आई

सह न पाई हंसी मजाक का तौर  तरीका

मनन किया कितना घटिया

 है स्तर इनकी सोच का

पहले टोकना चाहा फिर मौन हुई

खुद में ही सिमट कर रह गई |

जिसकी जैसी सोच वह वैसे ही करे व्यवहार

दूसरों पर फबतियां कसना कोई कैसे सहन करे

आखिर उसकी भी है तो कोई मन  मर्जी है

केवल उदासी ही नहीं है जीवन  का एक लक्ष्य |

 कभी खुशी की भी तलाश  होती है

पर  किसी निश्चित सीमा तक

 उसका जीवन सीमाओं में बंधा है

उनका  उल्लंघन रास नहीं आता उसे |

 

आशा