10 अक्टूबर, 2020

क्या कहने तुम्हारे वजूद के

 

क्या कहने तुम्हारे वजूद के
कभी एहसास ही नहीं होता
तुम्हारे अस्तित्व का
कहाँ गुम हो जाती हो
हलकी सी झलक दिखला कर |
समझ में नहीं आता तुम्हारा इरादा
यह कोई चुपाछाई का खेल नहीं है
हम अब बड़े होगए हैं
छोटे बच्चे नहीं है |
रहना है साथ बंधन से बंधे हैं
है तो कच्चे धागों का
पर मजबूती लिए है
समाज है गवाह इस बंधन का |
ऐसा प्यारा बंधन तुम्हें
क्यूँ रास नहीं आया
मुझे एहसास है बड़ा प्यारा
जीवन में नियामत सा मिला है |
तुम नहीं तो कुछ भी नहीं है
जीवन की रंगीनियों की
एक झलक भी दिल खुश कर देती है
तुम्हारी भीनी भीनी महक
मन खुशी से भर देती है |
आशा  
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Akanksha -Asha Lata Saxena
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तलाश खुशी की - हर समय की उदासी कैसे कोई सहन कर पाए जीवन में कुछ भी नहीं है जो वह कुछ भी सहन ना कर पाए | जितनी भी कोशिश...
Bankebihari Ojhà and Aditya Srivastava
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9 टिप्‍पणियां:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    11/10/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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    उत्तर
    1. आभार सहित धन्यवाद कुलदीप जी सूचना के लिए |

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-10-2020) को     "बिन आँखों के जग सूना है"   (चर्चा अंक-3851)     पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना की सूचना के लिए आभार सर |

      हटाएं
  3. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद सहित आभार सर |

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर अहसासों की सार्थक अभिव्यक्ति ! बहुत बढ़िया !

    जवाब देंहटाएं

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