क्या कहने तुम्हारे वजूद के
कभी एहसास ही नहीं होता
तुम्हारे अस्तित्व का
कहाँ गुम हो जाती हो
हलकी सी झलक दिखला कर |
समझ में नहीं आता तुम्हारा इरादा
यह कोई चुपाछाई का खेल नहीं है
हम अब बड़े होगए हैं
छोटे बच्चे नहीं है |
रहना है साथ बंधन से बंधे हैं
है तो कच्चे धागों का
पर मजबूती लिए है
समाज है गवाह इस बंधन का |
ऐसा प्यारा बंधन तुम्हें
क्यूँ रास नहीं आया
मुझे एहसास है बड़ा प्यारा
जीवन में नियामत सा मिला है |
तुम नहीं तो कुछ भी नहीं है
जीवन की रंगीनियों की
एक झलक भी दिल खुश कर देती है
तुम्हारी भीनी भीनी महक
मन खुशी से भर देती है |
आशा
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जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
11/10/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
आभार सहित धन्यवाद कुलदीप जी सूचना के लिए |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-10-2020) को "बिन आँखों के जग सूना है" (चर्चा अंक-3851) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार सर |
बहुत सुंदर रचना🌻
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद सहित आभार सर |
एक बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंसुन्दर अहसासों की सार्थक अभिव्यक्ति ! बहुत बढ़िया !
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