02 अप्रैल, 2010

धर्म की आड़ में

तेरा क्यों सम्मान करें ,
जो बार-बार सबने चाहा ,
तेरा धरम से क्या नाता ,
तू तो केवल चेक भुनाता ,
धर्म गुरू लोगों ने कहा ,
पर तू ना निकला सन्यासी ,
अरे धर्म का नाम डुबा,
कितने ढोंग रचाये तूने ,
जो चाहा जितना चाहा ,
शिष्यों से पाया तूने ,
मन भूखा तेरा तन भूखा ,
अरे मूर्ख अत्याचारी,
तेरे जैसे कई लोगों ने ,
धर्म की नींव हिला डाली ,
कई बार धर्म की आड़ लिए ,
लोगों को बर्बाद किया ,
जिनको माँ और बहन कहा ,
उनको ही गुमराह किया ,
किसी समस्या में फँस कर ,
मन का चैन खो जाने पर ,
आत्मशांति की चाहत में ,
यदि तेरी कोई शरण आया ,
शरणागत को खूब लुभा ,
कमजोर क्षणों का लाभ उठाया ,
आस्था का जाल बिछा,
अंधविश्वासी उसे बनाया ,
एक बालिका मैंने देखी ,
जिसने माँ की गलती झेली,
बाबा के चक्कर में फँस कर ,
वह मुग्धा बन बैठी चेली ,
पढ़ा लिखा सब धूल हो गया ,
खुद से ही खुद को बिसराया ,
बाबा ही शान्ति देते हैं ,
हर क्षण उसके संग रहते हैं ,
नहीं असहाय लाचार रहे ,
मन में ऐसा भाव जगाया ,
जो कुछ भी वह करती है ,
या बात किसी से करती है ,
बाबा सारी बातें उसकी ,
पूरी-पूरी सुन सकते हैं ,
उसको शक्ती देते हैं ,
मन में यह भ्रम रखती है ,
ऐसे ही कुछ बाबाओं ने,
धर्म ग्रंथों से नाता जोड़ा ,
अच्छी भाषा लटके झटके ,
व चमत्कार सबसे हटके ,
लोगों से नाता जोड़ा ,
ली धर्म की आड़ ,
अपने रंग में उन्हें डुबोया ,
जब कोई बुद्धिजीवी आया ,
सारी पोल पकड़ पाया ,
जैसे ही मुख से हटा मुखौटा ,
असली रूप नजर आया ,
तू बाबा है या व्यभिचारी ,
या है कोई संसारी ,
तेरी दरिंदगी देख-देख,
नफरत दिल में पलती है ,
आस्था जन्म नहीं लेती ,
मन में अवसाद ही भरती है|


आशा

3 टिप्‍पणियां:

  1. ढोंगी बाबाओं के मुखौटे उतारती एक यथार्थवादी रचना ! लोगों की धर्मभीरुता का फ़ायदा उठा कर इन बाबाओं ने समाज में अपनी जडें खूब गहरी कर ली हैं ! यह एक गम्भीर समस्या है जिसका निदान आसान नहीं है क्योंकि यहाँ जो शोषित है वही उनका सबसे बड़ा सहायक है ! एक सार्थक पोस्ट के लिये आभार !

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