08 अगस्त, 2010

हे जल निधि तुमसे है विनती मेरी

वर्षा ऋतु में जब भी ,
दृष्टि पड़ी अम्बर पर ,
कभी छितरे छितरे ,
कभी बिखरते बादलों को ,
तो कभी काली घनघोर घटाओं को ,
यहाँ वहां विचरते देखा ,
कई बार जल से ओत प्रोत ,
लगता जैसे अभी बरसेगे ,
पर चुपके से हवा के संग ,
जाने कहाँ निकल जाते |
धरती प्यासी ही रह जाती ,
जल के लिये तरस जाती ,
जो व्यथित होते उसके लिए ,
तलाश में जल की ,
इधर उधर निकल जाते |
पर जब बादल ,
उमढ़ घुमड़ कर आते ,
अत्यधिक वर्षा कर जाते ,
जन जीवन अस्त व्यस्त कर जाते |
यह अल्हड़पन और मनमानी ,
क्या नहीं वारिद की नादानी |
हे जळ निधि तुमसे यह विनती है मेरी ,
मेरी बात समझ लेना ,
जब भाप बने बादल उठें ,
और आगे बढ़ना चाहें|
उनसे कहना मनमानी शोभा नहीं देती ,
इधर उधर व्यर्थ ना घूमें
पहले से जान लें ,
कहाँ कितना बरसना है ,
धरती को हराभरा करना है |
हवा जो साथ ले जाती उन्हें ,
उसको भी समझा देना ,
उन्हें स्वतंत्र नहीं छोड़े ,
धीमे धीमे साथ चले ,
गति उनकी तेज न होने दे ,
गर्जन तर्जन से यदि वे,
डराना धमकाना चाहें ,
भयाक्रांत ना हो जाए ,
मनमानी उन्हें न करने दे ,
ना ही साथ कभी छोड़े |
ओ महासागर है अनुग्रह तुमसे,
तुम्ही ध्यान ज़रा दे लेना ,
अवर्षा या अधिक वर्षा ,
कहीं भी न होने देना ,
मन चले बादलों को ,
ठीक से समझा देना |
आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ....अधिक वर्षा भी हानि का सबब बन जाती है ..

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  2. बहुत सुंदर -गहरी-नेक सलाह से भरी हुई -भावपूर्ण रचना -बधाई

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  3. बहुत सुंदर -गहरी-नेक सलाह से भरी हुई -भावपूर्ण रचना -बधाई

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  4. अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (9/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  5. बहुत भावपूर्ण आग्रह किया है आपने सागर से ! प्रकृति के साथ ऐसा सुन्दर समन्वय यदा कदा ही देखने को मिलता है ! बहुत सुन्दर ! काश आपकी बात सागर सुन ले और सागर की बात बादल सुन लें !

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  6. वर्षा ऋतु में जब भी ,
    दृष्टि पड़ी अम्बर पर ,
    --
    बहुत सुन्दर!
    गीत के लिए यह मुखड़ा चुराने का मन कर रहा है!
    --
    क्या आप इस चोर को अनुमति देंगी?

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  7. शास्त्रीजी ,
    नमस्ते यदि आपको मेरी कविता की कुछ पंक्तिया
    पसंद आई हैं तो उन्हें अवश्य स्वर दें |आभार
    आशा

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  8. बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
    किस राह से बचना है
    किस छत को भिगोना है ....
    ये बादल कब अपने रोके रुकते हैं ...आवारा कही के ...!

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