02 सितंबर, 2010

कविता में परिवर्तन क्यूँ

सदा से ही प्रशंसक रहा ,
तुम्हारे कृतित्व का ,
इसको और बल मिला ,
जब मनोयोग से तुम्हें पढ़ा ,
इतना कुछ तुमने लिखा है ,
थाह पाना मुश्किल है ,
इच्छा तुमसे मिलने की ,
अधिक बलवती होती गई ,
जब भी अवसर मिला ,
तुमसे मिला ,
कुछ अधिक ही संपर्क रहा ,
मित्रता प्रगाढ़ होती गई ,
मैने जो कुछ भी लिखा ,
त्रुटियों को क्षम्य मान ,
मुझे सराहा,
प्रोत्साहित किया ,
कई बार साथ बैठा करते थे ,
भिन्न विषयों पर चर्चा करते हें ,
उनमे गहरे पैठ जाते थे ,
आत्मसात करते जाते थे ,
कई खंड काव्य रचे तुमने ,
वे अमर तुम्हें कर गए ,
दिलाया स्थान ,
इतिहास और साहित्य में ,
कई लोगों की प्रेरणा बन गए,
पहले कविता बहुरंगी थी ,
कई विधाएं छूती थी ,
फिर न जाने क्या हुआ ,
वह विद्रोह से भरती गई ,
यह कैसा परिवर्तन आया ,
क्रांतिकारी विचारक बन गए ,
जब भी कारण जानना चाहा ,
हर बार हंस कर टाल गए ,
मैं आज भी तुम्हारे जाने के बाद ,
रचनाएँ समेटे बैठा हूं ,
कारण विद्रोह का खोज रहा हूं ,
लेखन में यह बदलाव,
अचानक आया कैसे ,
कलम ने स्वयं को ,
विद्रोही बनाया कैसे |
आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. सदा से ही प्रशंसक रहा ,
    RAHA HOON MAIN TO
    ASHA MAA KA

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  2. आपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  3. बहुत सुंदर --लेखनी में यकीनन मनःस्थिति का प्रभाव तो पड़ता ही है
    शुभकामनाएं

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  4. परिस्थितियों से जुडते हुए कलम ने स्वयं को विद्रोही बनाया होगा ...

    अच्छी प्रस्तुति

    जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  5. साहित्य समाज का दर्पण है और लेखक की भावनाओं का प्रतिबिम्ब ! जब लेखक असंतुष्ट होगा और उसके मन में विद्रोह की भावना पनपेगी तो उसके लेखन में भी परिवर्तन आना स्वाभाविक है ! अच्छी और सारगार्भित रचना ! बधाई !

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