12 अक्टूबर, 2010

सादर वंदन

हे सुमन ,तुम हो शिव ,हो मंगल ,
तुम्हें मेरी सादर वंदन ,
जब तुम थे बाल सुमन ,
लोग बहुत प्यार देते थे ,
तुम्हें अनवरत देखा करते थे ,
जैसे जैसे वय बढ़ती गई ,
सौंदर्य बोध ने बहकाया ,
मदिरा का प्याला भी छलकाया,
पर कर्तव्यों से पीछे न हटे ,
हर चुनौती की स्वीकार ,
कहीं भी असफल ना रहे ,
नियमित जीवन संयत आचरण ,
जीवन के थे मूल मंत्र ,
अध्ययन ,मनन और चिंतन ,
में थी गहन पैंठ ,
मूर्धन्य साहित्यकार हुए ,
तुम्हारी कृतियों की,
कोई सानी नहीं है ,
प्रशंसकों की भी कमी नहीं है ,
इस दुनिया से दूर बहुत हो ,
पर कण कण में बसे हुए हो ,
साँसों का हिसाब किया करते थे ,
आज हो बहुत दूर उनसे ,
पहचान यहाँ की है तुमसे ,
हो वटवृक्ष ऐसे ,
जिसके आश्रय में आ कर ,
कई हस्तियाँ पनप गईं हें ,
आकाश की उचाई छू रही हें ,
है मेरा तुमको सादर नमन |
आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुमन जी एक बहुत ही यशस्वी कवि थे और मालवा के साहित्यजगत के एक मजबूत स्तंभ थे ! आपने अपनी कविता के द्ववारा जो उन्हें श्रद्धांजलि दी है वह अनुकरणीय है ! सुमन जी को मेरा भी नमन !

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  2. आदरणीय आशा माँ
    क्या कहू मैं
    साधना वैद जी सब कुछ तो बयाँ कर दिया है रचना के बारे में
    सुमन जी को मेरा भी नमन !

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  3. शिव मंगल सिंह सुमन को सादर नमन ...आपकी रचना सच्ची श्रृद्धांजलि है ..

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  4. बक़्हुत सुन्दर श्रद्धाँजली दी है। सुमन जी को मेरी भी विनम्र शर्द्धाँजली। धन्यवाद।

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  5. शिव मंगल सिंह सुमन जी को सादर नमन ...आपने उन्हें अनुपम रूप में याद किया...आभार.


    ________________
    'शब्द-सृजन की ओर' पर आज निराला जी की पुण्यतिथि पर स्मरण.

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