11 अक्टूबर, 2010

वे बेवफा नहीं हें

उदास होते हुए भी ,
दुखी नहीं हूं ,
है विश्वास खुद पर ,
लाचार नहीं हूं ,
सताया बहुत दुनिया ने ,
पर दोषी नहीं हूं ,
ना चाहते हुए भी ,
चुप हूं ,
कहना बहुत है ,
पर मौन हूं ,
जोड़ा है नाता,
ग़मों से ,
हाथ मिलाया,
है उनसे ,
क्यूँ कि वे ,
बेवफा नहीं हें,
है दुनिया उनकी भी ,
अब उसी में,
खो गई हूं ,
पर बातें कल की,
याद जब आतीं हें ,
जग की,
निष्ठुरता की ,
पहचान कराती हें ,
जान गई हूं ,
समझ गई हूं ,
है क्या अर्थ,
निष्ठुरता का ,
साहस भी है,
कहने का ,
पर शब्द होंटों तक ,
आकर लौट जाते हें ,
परिणीति है यह ,
ग़मों के साथ जीने की ,
उन्हीं में,
डूबे रहने की ,
उनसे सीखी,
सहनशीलता ,
और सीमाएं उसकी ,
वे सदा,
साथ निभाते है ,
जब भी हाथ बढाया ,
साथ खड़े,
हो जाते हें ,
मित्रता निभाते हें ,
कितनी भी विषम ,
परिस्थिती हो ,
मैं उन्हीं में,
डूबी रहती हूं ,
तभी अपने को ,
सम्हाल पाती हूं |
आशा

4 टिप्‍पणियां:

  1. 2/10


    भाव सुन्दर हैं किन्तु
    ये बात गद्य में भी कही जा सकती है
    फिर काव्य-कवच क्यों ?

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  2. बहुत कोमल और संवेदनशील अभिव्यक्ति ! ज़रूरत के समय किसीका आश्वस्त करता साथ और विश्वास मिल जाए इससे बड़ी और क्या बात हो सकती है ! सुन्दर प्रस्तुति ! आभार एवं शुभकामनाएं !

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  3. bhavpoorna rachana .........shabda shabda dil me utar gaya ...........ek achchhi rachana ke liye dhanyavaad

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