10 अक्टूबर, 2010

हे शक्ति दायनी


हे शक्तिदायानी वर दायनी ,
हे कल्याणी ,हे दुर्गे ,
तुम्हारे द्वार पर जो भी आता ,
खाली हाथ नहीं जाता ,
पूर्ण कामना होती उसकी ,
जो भी तुम्हें मन से ध्याता ,
है उसकी झोली खाली क्यों?
उसने तो सभी यत्न किये ,
तुम्हें पूरी तरह मनाने के ,
भक्ति भाव में डूबा था ,
फिर रही कहाँ कमी ,
यदि इसका भान करा देतीं,
कठिन परीक्षा ना लेतीं ,
वह भव सागर से तर जाता ,
इस जीवन से मुक्ति पाता ,
उसकी झोली खाली थी ,
आज तक भी भरी नहीं है ,
कोई उपाय सुझाया होता ,
वह ठोकर नहीं खाता ,
यदि गिरता भी तो सम्हल जाता ,
बड़े अरमान थे बेटी के ,
तुम बेटी बन कर आजातीं ,
वह तुम्हारे और निकट होता ,
तुम में ही खोता जाता ,
यश गान तुम्हारा सदा करता ,
संतुष्टि का अनुभव करता |
आशा

3 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारे द्वार पर जो भी आता ,
    खाली हाथ नहीं जाता ,
    पूर्ण कामना होती उसकी ,
    जो भी तुम्हें मन से ध्याता.
    ....मन को स्पंदित करती हैं ये पंक्तियाँ..उम्दा कविता..बधाई.

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  2. बड़े अरमान थे बेटी के ,
    तुम बेटी बन कर आजातीं ,
    वह तुम्हारे और निकट होता ,
    तुम में ही खोता जाता ....

    मन की उद्गार प्रभावी तरीके से लिखें हैं आपने ...

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