10 अक्टूबर, 2010

कुछ ना कुछ सीख देती है ,

आदित्य की प्रथम कीं ,
भरती है जीवन ऊर्जा से ,
कलकल बहता जल सरिता मै ,
सिखाता सतत आगे बढना ,
जल स्त्रोत सिखाता है ,
कपट ह्रदय मै कभी न रखना ,
निर्मल जल से सदा रहना ,
कोकिला की कुहुक कुहुक ,
देती सन्देश मीठी वाणी का ,
हरी भरी वादी कहती ,
सदा विहसते रहना ,
शाम ढले पक्षी समूह ,
जब आसमान मै करते विचरण ,
लगते बहुत अधीर ,
गंतव्य तक पहुंचने के लिए ,
उन्हीं दीख लगता है ,
द्वार पर बैठ राह कोइ देख रहा ,
उसके भी धर लौटने की ,
चाँद चांदनी ओर आकाश ,
जिसमे दिखती आकाश गंगा ,
उसमे चमकते तारे अनेक ,
होता परिचय प्राकृतिक सौंदर्य का ,
प्रकृति की अनुपम छटा ,
हर और दिखाई देती है ,
कुछ न कुछ सीख देती है ,
जो होती है बहुत अमूल्य ,
प्रकृति से छेड़छाड ,
दुःख से भर देती है ,
पर्यावरण का संकल्प ।
बहुत महत्व रखता है ,
जो भागीदार होता इसका ,
वृहद कार्य करता है |
आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति की अनुपम छटा ,
    हर और दिखाई देती है ,
    कुछ न कुछ सीख देती है ,
    जो होती है बहुत अमूल्य ,
    प्रकृति से छेड़छाड ,
    दुःख से भर देती है ,
    हां हर तरफ़ इन्सान अपनी स्वार्थ-पूर्ति के लिये प्रकृति के साथ छेड़छाड़ ही नही कर रहा, बल्कि उसे नष्ट करने पर तुल गया है. सुन्दर कविता.

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  2. आपने अपने अनुपम काव्य में
    विभिन्न प्रतीक व् उदाहरण देकर
    जीवन-दर्शन समझाने का कार्य किया है
    जो अनुकरणीय है .
    उत्तम !

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  3. पर्यावरण का संकल्प ।
    बहुत महत्व रखता है ,
    जो भागीदार होता इसका ,
    वृहद कार्य करता है |..

    Truly inspirational. !

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  4. प्रकृति की अनुपम छटा में छिपा जीवन दर्शन बखूबी उकेरा आपने...बधाई.


    ____________________
    'शब्द-सृजन..." पर आज लोकनायक जे.पी.

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  5. आपने सच कहा ! प्रकृति का हर रूप सार्थक सन्देश और प्रेरणा देता है बस उस सन्देश को ग्रहण करने की समझ होना ज़रूरी है ! एक प्रेरणाप्रद और सार्थक कविता !

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