एक दिन एक व्रत लिया
दिन भर खड़े रहने का
सारे दिन मौन रहने का
सोचा दिन भर चुप रहूंगी
एक भी शब्द ना कहूंगी
पर जैसे ही सुबह हुई
आवाजों का क्रम शुरू हो गया
और मौन टूट गया
उस पर भी था उल्हाना
जबाब क्यूं नहीं देतीं
कब से पुकार रहे हें
तुम ध्यान नहीं देतीं
इतना शुब्ध मन हुआ
बैठने का मन हुआ
और प्रण टूट गया
फिर सोचा पूजा करू
निर्जला व्रत रखूं
आधा दिन तो बीत गया
फिर सहनशक्ति ने कूच किया
और उपवास टूट गया
जब भी व्रत रखती हूं
कई व्यवधान आते हें
कारण चाहे जो भी हो
हो जाता है मन विचलित
सोच रही हूं अब मैं
कोई उपवास नहीं रखूं
आस्थाओं पर टिक न पाती
सारी महानत व्यर्थ जाती
ऐसे व्रत से लाभ क्या
जो पूर्ण नहीं हो पाता
मन असंतुलित कर जाता
सत् कर्म से अच्छा
शायद ही कोई व्रत होता हो
मन चाहता उसी पर अडिग रहूं
आस्था उसी पर रखूं |
आशा
"सत् कर्म से अच्छा,
जवाब देंहटाएंशायद ही कोई व्रत होता हो ,"
सच बात है, बहुत अच्छे विचार । आभार ।
सत् कर्म से अच्छा,
जवाब देंहटाएंशायद ही कोई व्रत होता हो ,
मन चाहता है,
उसी पर अडिग रहूं ,
आस्था उसी पर रखूं |
--
बहुत ही उत्तम सन्देश कविता में दिया है आपने!
--
कल मंगलवार को इसका कुछ अंश चर्चा मंच के लिए चुरा लिया है!
आस्थाओं पर,
जवाब देंहटाएंकब तक टिकी रहूं ,
जो पूरा नहीं होपाता ,
ऐसे व्रत से लाभ क्या ,
मन असंतुलित कर जाता ,
सत् कर्म से अच्छा,
शायद ही कोई व्रत होता हो ,
मन चाहता है,
उसी पर अडिग रहूं ,
आस्था उसी पर रखूं |
bahut achhee lines... aur sahi hai aisi aastha par aastha kaise rakhee jaye???
आशा जी,
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन!!
हां, अडिग आस्था तो सत् कर्म पर ही हो। यथार्थ!!
सत् कर्म से अच्छा,
जवाब देंहटाएंशायद ही कोई व्रत होता हो ,
मन चाहता है,
उसी पर अडिग रहूं ,
आस्था उसी पर रखूं |
इससे बडा व्रत कौन सा है? बहुत अच्छा व्रत लिया और असली व्रत यही है। बधाई।
जब शांति हो तो व्रत आसान हो जाता है .... पर फिर उसकी ज़रूरत भी कहाँ रहती है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसत् कर्म से अच्छा,
शायद ही कोई व्रत होता हो ,
मन चाहता है,
उसी पर अडिग रहूं ,
आस्था उसी पर रखूं |.....
सत् कर्म से अच्छा,
जवाब देंहटाएंशायद ही कोई व्रत होता हो ,
-इससे बड़ा व्रत कौन सा हो सकता है भला..
बहुत अच्छे भाव प्रस्तुत किए हैं आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और विचारपूर्ण चिंतन ! सत्कर्म में निरत रहा जाए, सत्कर्म में ही आस्था हो और सत्कर्म का ही व्रत लिया जाए यही श्रेयस्कर है ! सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना ! बधाई एवं आभार !
जवाब देंहटाएंमन चाहता है,
जवाब देंहटाएंउसी पर अडिग रहूं ,
आस्था उसी पर रखूं
...........बहुत अच्छा व्रत
आस्था मन में है तो फिर व्रत की कोई जरूरत नहीं। आस्था से बड़ा कोई व्रत नहीं। व्रत का वास्तविक अर्थ भूखा रहना नहीं, संकल्पित होना है। और आप तो संकल्पित हैं ही ईश्वर के प्रति। फिर दूसरे किस व्रत की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। रही बात निर्जला और मौन व्रत की तो वह भी ईश्वर प्राप्ति का साधन नहीं है। मन शांति और मन शुदि़ध के लिए इन सबकी आवश्यकता पड़ती है। लेकिन आप की बातें कहती हैं कि आप निर्मल भी हैं और आपकी सोच भी स्वच्छ और आस्था से पूर्ण है। ऐसे में ईश्वर के प्रति बस निस्वार्थ आस्था रखिए, उपवास वाले व्रत तो हम जैसे लोग करते ही हैं...। बेवजह, बता दें रहे हैं कि आज मेरा मंगलवार है।
जवाब देंहटाएं