वह चाहती नहीं कि
कोई तुझसे कुछ कहे
है बस अधिकार उसी का
जो भी कहे वही कहे
तू भी कुछ न कहे
केवल सुने
और उसी से जुड़ा रहे
कोई अन्य अपना
वर्चस्व न जता पाए
ना ही तुझे भरमाए
तू है दूर मीलों उससे
फिर भी हर आहट
तेरी ही लगती है
तुझे अगर ठोकर लगे
वह जान लेती है
कुछ कर तो नहीं सकती
पर सचेत कर देती है
है माँ तेरी
भला चाहती है तेरा
उसे स्वीकार नहीं
तू मनमानी करे
कठिन परिस्थिति से गुजरे
यदि कुछ उसकी सुने
विचार करे
सलाह का सत्कार करे
तभी शायद तुझे
सही राह मिल पाएगी
तेरी दशा सुधर पाएगी |
आशा
माँ का स्नैह ऐसा ही होता हैँ, माँ और बच्चे की आत्मा एक रूप होती हैँ। एक माँ से ज्यादा बच्चे के बारे मेँ अन्य कोई नहीँ जानता। बहुत ही प्यारी और न्यारी , कोमल भावोँ से सजी कविता के लिए बहुत-बहुत आभार! -: VISIT MY BLOG :- पढ़िये मेरे ब्लोग "Sansar" पर नई गजल। http://vishwaharibsr.blogspot.com
जवाब देंहटाएं@ आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंहम तो आपकी भावनाओं को शत-शत नमन करते हैं.
माँ से ज्यादा बच्चे के बारे मेँ अन्य कोई नहीँ जानता।
.............प्रशंसनीय रचना।
एक माँ की भावनाओं को बड़ी खूबसूरती के साथ अभिव्यक्ति दी है आपने ! कोमलता और वात्सल्य से परिपूर्ण भावभीनी रचना ! बधाई एवं शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंbahot sunder aur bhawpurn rachna.
जवाब देंहटाएंमाँ के प्यार को बड़े सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त किया है.
जवाब देंहटाएंसच बच्चे को एक ठोकर लगे...और माँ जान जाती है...
जैसे ये शेर:
मैं रोया परदेश में, भीगा माँ का प्यार
दिल ने दिल से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार
तुझे अगर ठोकर लगे ,
जवाब देंहटाएंवह जान लेती है ,
कुछ कर तो नहीं सकती ,
पर सचेत कर देती है ,
है माँ तेरी...
...maa ka yahi apnapan jeewan bhar rahta hai.. bahut sundar prastuti