03 जनवरी, 2011

क्यूँ उठने लगे हैं सवाल

क्यूँ उठने लगे हैं सवाल ,
रोज होने लगे हैं खुलासे ,
और होते भंडाफोड़ ,
कई दबे छिपे किस्सों के ,
पहले जब वह कुर्सी पर था ,
कोई कुछ नहीं बोला ,
हुए तो तभी थे कई कांड ,
पर तब था कुर्सी का प्रभाव ,
कहीं खुद के काम न अटक जायें ,
तभी तो मौन रखे हुए थे ,
जाते ही कुर्सी इज्जत सड़क पर आई ,
कई कमीशन कायम हुए ,
अनेकों राज़ उजागर हुए ,
और खुलने लगे द्वार,
कारागार के उनके लिए ,
क्या उचित था तब मौन रहना ,
या गलत को भी सही कहना ,
हाँ में हाँ मिला उसके,
अहम् को तुष्ट करना ,
प्रजातंत्र के नियमों का ,
खुले आम अनादर करना ,
तब आवाज़ कहां गयी थी ,
क्यूँ बंद हो गयी थी ,
अब ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर ,
ढोल में पोल बता कर ,
सोचने पर विवश कर रहे हो ,
तुम भी उन में से ही हो ,
तब तो बढ़ावा खूब दिया ,
अब टांगें खींच रहे हो ,
जब कुर्सी से नीचे आ गया है ,
पर है वह चतुर सुजान ,
चाहे जितने कमीशन बैठें ,
अपने बचाव का उपाय खोज ही लेगा |


आशा

14 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    चाहे जितने कमीशन बैठें ,
    अपने बचाव का उपाय खोज ही लेगा |
    ...........बढ़िया प्रस्तुति !
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  2. जिंदगी में हर दिन एक नया सवाल मन में उठता है

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  3. व्यवस्था की खामियों और दूषित मानसिकता को उजागर करती एक बहुत ही बढ़िया रचना ! चोर चोर मौसेरे भाई ! घपलों के समय सब एक दूसरे की ढकने में और काम निकल जाने के बाद टाँग खींचने में लगे रहते हैं ! लेकिन यह भी सच है कि कितने भी कमीशन बैठ जाएँ सिद्ध कुछ नहीं कर पाते ! अच्छी रचना !

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  4. राजनीती का चेहरा बहुत कुरूप हो गया है.

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  5. जिंदगी में हर दिन एक नया सवाल मन में उठता है
    राजनीती का चेहरा बहुत कुरूप हो गया है
    बढ़िया प्रस्तुति

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  6. आपकी रचना हमारी ही कमजरियों का खुलासा कर जाती है ,बधाई !

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  7. राजनितिक परिदृश्य पर सुन्दर कविता..

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  8. रचना में बहुत सुन्दर चित्र खींचा है आपने!

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  9. सही कहा...

    सभी तो एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं,कोई उन्नीस कोई बीस....

    हाँ यह है कि जब जरूरत से ज्यादा खा जाते हैं तो कभी कभी अनपच हो जाता है और वह उच्छिष्ट पदार्थ दिख ही जाता है...

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  10. तब तो खूब बढ़ावा दिया , अब क्यूँ टाँगे खिंच रहे हो ...
    हम सब सुविधा भोगी हो गए हैं ...जब तक सुविधाएँ प्राप्त होती रहती हैं ,हमारी जबान बंद रहती है ...
    इस कटु सत्य पर एक तीक्ष्ण कटाक्ष करती बेहतरीन कविता !

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