03 मई, 2011

क्षुधा के रूप अनेक


क्षुधा के रूप अनेक
कुछ की पूर्ति होती सम्भव
पर कुछ अधूरे ही रह जाते
विवेक शून्य तक कर जाते |
हर रूप होता विकराल इसका
हाहाकार मचा जाता
क्षुधा की तृप्ति ना होने पर
गहन क्षोभ जन्म लेता |
हो भूख उदर या तन की
उससे है छुटकारा सम्भव
प्रयत्न तो करना पड़ता है
पर होता नहीं असंभव |
होती क्षुधा विलक्षण मन की
सब्ज बाग दिखाता है
कभी पूर्ति होती उसकी
कभी अधूरी रह जाती है |
आत्मा की क्षुधा
परमात्मा से मिलने की
कभी समाप्त नहीं होती
उस क्षण की प्रतीक्षा में
जाने कहाँ भटकती फिरती |
करते ध्यान मनन चिंतन
ईश्वर से एकात्म न होने पर
मन भी एकाग्र ना हो पाता
है मार्ग दुर्गम इतना कि
क्षुधा शांत ना कर पाता |

आशा



8 टिप्‍पणियां:

  1. ईश्वर से एकात्म न होने पर
    मन भी एकाग्र ना हो पाता
    है मार्ग दुर्गम इतना कि
    क्षुधा शांत ना कर पाता |... sach hai

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  2. आदरणीया आशा जी ,

    कितना भावपूर्ण एवं गहन विश्लेषण किया है 'क्षुधा' का....आपने अपनी सुन्दर रचना में

    इहलोक से परलोक तक , आत्मा से परमात्मा तक .....चिंतन यात्रा कराती रचना |

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  3. ईश्वर से एकात्म न होने पर
    मन भी एकाग्र ना हो पाता
    है मार्ग दुर्गम इतना कि
    क्षुधा शांत ना कर पाता |

    जीवन के सच समझती हुई अति गहन अभिव्यक्ति |
    बहुत सुंदर रचना .बधाई .

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  4. दिक्कत यही है कि हममें से अधिकतर उस आत्मिक क्षुधा को जीवन के आखिरी दौर में अनुभव करते हैं। परमात्मा कहीं हमारे भीतर ही था,मगर जीवन का अधिकांश जिन कूड़ों में बीता,उसके कारण ही अब इतना श्रम।

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  5. ईश्वर से एकात्म होने की क्षुधा ही कदाचित सबसे अहम है और इसका निदान होना भी आवश्यक है ! यदि मनुष्य आरम्भ से ही इसके लिये प्रयत्नशील रहे तो इस क्षुधा की तृप्ति भी संभव है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई !

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  6. जीवन की सच्चाई समझाती गहन अभिव्यक्ति |धन्यवाद|

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  7. जीवनभर इंसान तन,मन और धन की क्षुधा के लिये व्याकुल रहता है
    आत्मा की क्षुधा अर्थात ईश्वर को तो हम भूल ही जाते हैं |सारगर्भित और
    बहुत सार्थक रचना |

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  8. श्रीमान जी, मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.

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