कभी लगती पुष्पों की सेज सी
कभी डगर काँटों की
कभी पेंग बढाते झूले सी
ऐसी ही है जिंदगी |
देखते ही देखते
यूं ही गुजर जाती है
कैसे करें भरोसा इस पर
कभी भी साथ छोड़ जाती है |
जो भी इसे समझ पाया
सामंजस्य स्थापित कर पाया
वही अपने हिसाब से
अपने तरीके से जी पाया |
जिसने इसे नहीं समझा
इसका मोल नहीं आंका
इसे भोग नहीं पाया
वह भी तो इससे जुदा हुआ |
किसी ने बेवफा कहा इसे
कुछ ने मुक्ति मार्ग का नाम दिया
जाने कितनों ने इसे उपकार कहा
प्रभु की अनमोल देन समझा |
वह भी ऐसी
जो जन्म के साथ मिली हो
फिर वह बेवफा कैसे हो
जिसमें वफा ही भरी हो |
संगी साथी सब छूट जाते हैं
कभी स्मृतियों में
खोते जाते है
कभी विस्मृत भी हो जाते हैं |
है जिंदगी ऐसा अनुभव
जो दौनों ही पाते हैं
कुछ याद रखते हैं
कई भूल जाते हैं |
आशा
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जीवन सार बताती हुई अनमोल कृति ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ..!!
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएंआज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र . (अब तो चवन्नी बराबर भी नहीं हमारी हैसियत)
दार्शनिकता से भरी अनुपम रचना ! विचारों का सतत प्रवाह बाँधे रखता है ! बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंsundar aur sateek rachana
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना|
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंreally very nice
जवाब देंहटाएं--------------शानदार अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंयह जीवन दर्शन है
जीवन लहरी है,
कहीं उथली,
कहीं गहरी है ...