21 जून, 2011

ऐसी ही है जिंदगी


कभी लगती पुष्पों की सेज सी

कभी डगर काँटों की

कभी पेंग बढाते झूले सी

ऐसी ही है जिंदगी |

देखते ही देखते

यूं ही गुजर जाती है

कैसे करें भरोसा इस पर

कभी भी साथ छोड़ जाती है |

जो भी इसे समझ पाया

सामंजस्य स्थापित कर पाया

वही अपने हिसाब से

अपने तरीके से जी पाया |

जिसने इसे नहीं समझा

इसका मोल नहीं आंका

इसे भोग नहीं पाया

वह भी तो इससे जुदा हुआ |

किसी ने बेवफा कहा इसे

कुछ ने मुक्ति मार्ग का नाम दिया

जाने कितनों ने इसे उपकार कहा

प्रभु की अनमोल देन समझा |

वह भी ऐसी

जो जन्म के साथ मिली हो

फिर वह बेवफा कैसे हो

जिसमें वफा ही भरी हो |

संगी साथी सब छूट जाते हैं

कभी स्मृतियों में

खोते जाते है

कभी विस्मृत भी हो जाते हैं |

है जिंदगी ऐसा अनुभव

जो दौनों ही पाते हैं

कुछ याद रखते हैं

कई भूल जाते हैं |

आशा

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8 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन सार बताती हुई अनमोल कृति ...!!
    बहुत सुंदर रचना ..!!

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  2. दार्शनिकता से भरी अनुपम रचना ! विचारों का सतत प्रवाह बाँधे रखता है ! बधाई स्वीकार करें !

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  3. --------------शानदार अभिव्यक्ति....
    यह जीवन दर्शन है
    जीवन लहरी है,
    कहीं उथली,
    कहीं गहरी है ...

    जवाब देंहटाएं

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