है दिखावे से भरपूर दुनिया
कुछ स्पष्ट
नजर नहीं आता
अतिवादी अक्सर मिलते हैं
कोइ तथ्य नजर नहीं आता
आँखें तक धोखा खा जाती हैं
अंजाम नजर नहीं आता |
जो दिखाई देता है
कभी सत्य
तो कभी असत्य रहता
जो कुछ सुनते हैं
उस पर विश्वास करें कैसे
आखों देखी कानों सुनी
बातों पर भी
विश्वास नहीं होता |
समाचार पत्रों के आलेख भी
अक्सर होते एक पक्षीय
और अति रंजित
जानकारी निष्पक्ष कम ही देते हैं
आक्षेप एक दूसरे पर
और छींटाकशी
इसके सिवाय और कुछ नहीं |
हैं जाने कैसे वे लोग
कितनी ही कसमें खाईं
वादे किये कसमें दिलाईं
पर उन पर भी
खरे नहीं उतारे
विश्वास किस पर कैसे करें
यह तक स्पष्ट नहीं है
आँखें धुंधला गईं हैं
शब्द मौन हैं
वहाँ भी भ्रम ही
नजर आता है|
है यह कैसा चलन
आम जनता की
कोइ आवाज नहीं है
हर ओर दिखावा होता है
सत्य कुछ और होता है
आशा
सच को रूबरू कराती आपकी कविता प्रश्न चिन्ह छोड़ जाती है कैसी है ये दुनिया बधाई
जवाब देंहटाएंsatya ki khoj me bhatakta man ....
जवाब देंहटाएंsunder rachna ....
वर्तमान में व्याप्त असमंजस की स्थिति को बड़ी खूबी से अभिव्यक्त किया है ! वाकई आजकल कुछ भी विश्वसनीय नहीं रह गया है, ना इंसान ना आँकड़े ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसच को दिखाती रचना....
जवाब देंहटाएंसत्य कुछ और होता है
जवाब देंहटाएंhaan...bas yahi to ho raha hai,ekdam theek kah rahin hain.
satya sirf hamare dekhne k najariye par depend karta hain...
जवाब देंहटाएंसच को दिखाती बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति| आभार|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सटीक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसच्चाई से रूबरू कराती खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने, बहुत सुन्दर जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत.......
जवाब देंहटाएंसच को दिखाती रचना....
जवाब देंहटाएंआशा जी ,
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही लिखा है कि विश्वास किस पर करें ...होता कुछ है और दिखाई कुछ और देता है ...
मन चकित और भ्रमित हो कर रह जाता है ..सुन्दर और अर्थवान प्रस्तुति
कितना सुन्दर
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति....
सादर बधाई...