27 जुलाई, 2011

छलकने लगा प्यार


भवें लगती कमान
नयनों के सैन बाण ,
निशाना भी है कमाल
यूँ ही व्यर्थ जाए ना |

पानी व दर्प उसका
लगता सच्चे मोती सा ,
बिना प्रीतम से मिले
चैन उसे आए ना |

प्रिय मिलन की आस
लगी लौ हुई बेहाल ,
विचित्र हाल मन का
पर बतलाए ना |

मिला जब मीत आज
खुशी का ना कोइ नाप ,
छलकने लगा प्यार
समेटा भी जाए ना |

आशा

24 टिप्‍पणियां:

  1. इस पर भारतेन्दु जी की एक कविता याद आ गई- ‘पिय प्यारे तिहारे निहारे बिना अंखिया दुखिया नहि मानती हैं'

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  2. मिला जब मीत आज
    खुशी का ना कोइ नाप ,
    छलकने लगा प्यार
    समेटा जाए ना |

    मीत मिलता है तो खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता...
    बहुक प्यारी...

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  3. बहुत बहुत...प्यार भरा इंतज़ार प्रियतम का

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  4. मिला जब मीत आज
    खुशी का ना कोइ नाप ,
    छलकने लगा प्यार
    समेटा भी जाए ना

    बहुत सुन्दर शब्द संयोजन , सुन्दर प्रस्तुति

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  5. वाह दीदी क्या खूब घनाक्षरी प्रस्तुत की है आपने| आप से और भी ऐसी कई घनाक्षरियों की उम्मीद जाग गई है अब तो|

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  6. आज तो कमाल कर दिया आपने ! बहुत ही खूबसूरत रचना है ! बहुत सधी हुई और नपी तुली ! इसी तरह हमें प्रतिदिन चमत्कृत करती रहिये ! पढ़ कर मज़ा आ गया !

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  7. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  8. अच्छे शब्द ,बेहतरीन कविता , बधाई

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  9. बहुत बढिया प्रस्तुति
    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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  10. बहुत सुन्दर आनन्द से भरपूर रचना। बधाई।

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  11. प्रेम को समेटना वैसे भी आस्दान नहीं ... दीर पिया मिलन का प्रेम ... कमाल की रचना है ...

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  12. कल 29/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  13. वाह!! सुन्दर प्रवाह मयी रचना... आनंद आ गया पढ़कर...
    सादर....

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  14. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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