हूँ भया क्रांत
और जान सांसत में
कोइ आहट नहीं
फिर भी घबराहट
तनी है भय की चादर
आस पास |
इससे मुक्त होने के लिए
अनेकों यत्न किये
पीछा फिर भी
न छूट पाया |
अब तो लगता है
यह है उपज मन की
दबे पाँव आ जाता है
छा जाता मन
मस्तिष्क पर |
कुछ करने की
इच्छा नहीं होती
फिर से लिपट जाता हूँ
उसी चादर में
भय के आगोश में |
ओर खोजता रहता हूँ
वास्तविकता उसकी
जानना चाहता हूँ
है सत्य क्या उसकी |
आशा
और जान सांसत में
कोइ आहट नहीं
फिर भी घबराहट
तनी है भय की चादर
आस पास |
इससे मुक्त होने के लिए
अनेकों यत्न किये
पीछा फिर भी
न छूट पाया |
अब तो लगता है
यह है उपज मन की
दबे पाँव आ जाता है
छा जाता मन
मस्तिष्क पर |
कुछ करने की
इच्छा नहीं होती
फिर से लिपट जाता हूँ
उसी चादर में
भय के आगोश में |
ओर खोजता रहता हूँ
वास्तविकता उसकी
जानना चाहता हूँ
है सत्य क्या उसकी |
आशा
सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंअज्ञान से 'भय' उत्पन्न होता है.
दैवी संपदा में प्रथम संपत्ति 'अभय' ही है.(भगवद्गीता गीता अध्याय १६)
मेरे ब्लॉग पर आपके दर्शन से आनंद मिलता है.
अब तो लगता है
जवाब देंहटाएंयह है उपज मन की
दबे पाँव आ जाता है
छा जाता मन
मस्तिष्क पर |
कुछ करने की
इच्छा नहीं होती
हर जीवन का यथार्थ , सार्थक प्रस्तुति
सच को कहती रचना...
जवाब देंहटाएंहूँ भया क्रांत
जवाब देंहटाएंऔर जान सांसत में
कोइ आहट नहीं
फिर भी घबराहट
तनी है भय की चादर
आस पास
..bhay ka sundar yathrath chitran ke liye aabhar!
सुन्दर जज्बात बेहतरीन शब्दों का संसार
जवाब देंहटाएंभय को अच्छे शब्दों में ढाला है ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbahut achchi tarah likhi hain.....
जवाब देंहटाएंअनजाने का भय सदा ही डराता है, विचलित करता है ! भय की आक्रामकता को बड़ी कुशलता से बखाना है ! सुन्दर रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंभय एक बार हावी हो जाये, तो चैन छीन लेता है, इस को तो आते ही दुत्कार देना बेहतर|
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना..बेहतरीन शब्दों का समावेश .......आभार
जवाब देंहटाएंkhushi hi hain bhay ka ilaaz
जवाब देंहटाएंnice poem
भय के भय का भावपूर्ण शब्दांकन
जवाब देंहटाएंसुंदर भावप्रवण रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.