31 जुलाई, 2011

सुख दुःख तो आते जाते हैं


होता रहता परिवर्तन
कभी खुशी सुख देती
कभी अहसास होता
दर्दे दुःख का |
क्या है यह सब
मन बावरा जान नहीं पाता
आती खुशी पल भर को
फिर से गहन उदासी छाती
होता नहीं नियंत्रण मन पर
ना ही कोइ बंधन उस पर
होता हर बार कुछ नया
जो स्वीकार्य तक नहीं होता
मन जिधर झुकता
वह भी झुकता जाता |
जैसा वह चाहे होता है वही |
दे दोष किसे
इस अस्थिरता के लिए
अजीब प्रकृति है
विचलन नहीं थमता |
जाने क्यूँ मन चंचल
ठहराव नहीं चाहता
है वह झूले सा
कभी ऊंचाई छूता
कभी नीचे आता |
भूले भटके जब भी
तटस्थ भाव जाग्रत होता
तभी लगता
सुख दुःख तो आते रहते 
अनेक रंग जीवन के
हैं अभिन्न अंग उसके |
आशा



11 टिप्‍पणियां:

  1. ये जीवन है, मिलना, जुडना, बिछुडना चलता रहता है।

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  2. सुख दुःख तो आते जाते हैं
    हैं अनेक रंग जीवन के
    और वे भी हैं
    अभिन्न अंग उसके |

    जीवन का सार यही है ! इसलिए सुख दुःख को निस्पृह होकर स्वीकार कर आगे बढ़ते जाना ही श्रेयस्कर है ! जैसे दिन के बाद रात का आना और रात के बाद भोर का आना निश्चित है उसी तरह सुख दुःख का चक्र भी चलता ही रहता है इनके आने जाने से विचलन कैसा ! जीवन दर्शन को व्याख्यायित करती सुन्दर रचना ! बधाई !

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  3. bilkul theek bat ...
    aise hi jeevan chalata hai ...
    sunder rachna ...
    abhar.

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  4. अजीब प्रकृति है
    विचलन नहीं थमता |
    जाने क्यूँ मन चंचल
    ठहराव नहीं चाहता
    है वह झूले सा
    कभी ऊंचाई छूता
    कभी नीचे आता |


    सुन्दर भावाभिव्यक्ति , अच्छी रचना

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  5. जीवन दो के द्वंद्व के सहारे प्रवाहमान रहता है।
    कविता अच्छी लगी।

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  6. सुख दुःख तो आते जाते हैं
    हैं अनेक रंग जीवन के
    और वे भी हैं
    अभिन्न अंग उसके |


    जीवन की सच्चाई निहित है आपकी इस रचना में....
    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.

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  7. sach kaha hai aapne man bavra hota hai ,yahi jivan ki sachhai hai

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