01 अगस्त, 2011

तुम कैसे जानोगे


है प्यार क्या
उसका अहसास क्या
तुम कैसे जानोगे
जब तुमने किसी से
प्यार किया ही नहीं |
पिंजरे में बंद पक्षी की वेदना
कैसे पहचानोगे
जब तुमने ऐसा जीवन
कभी जिया ही नहीं |
उन्मुक्त पवन सा बहना भी
तुम समझ ना पाओगे
क्यूँ कि
ए .सी .कमरे की हवा में
जिसमें पूरा दिन बिताते हो
उस जैसा प्रवाह कहाँ |
बाह्य आडम्बरों में लिप्त तुम
भावनाएं किसी की
कैसे समझोगे
हो प्रकृति से दूर बहुत
आधुनिकता की दौड़ में
सबको पीछे छोड़आए हो |
प्यार और दैहिक भूख
के अंतर को
कैसे जान पाओगे
जब सात्विक प्यार के
अहसास को
दिल से न लगाओगे |

आशा

12 टिप्‍पणियां:

  1. पिंजरे में बंद
    पक्षी की वेदना
    कैसे पहचानोगे
    जब तुमने ऐसा जीवन
    कभी जिया ही नहीं |
    ... bahut hi gahri prastuti

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  2. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    गहन अभिव्यक्ति ...... बहुत कमाल का बिम्ब चुना आपने...

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  3. हो प्रकृति से दूर बहुत
    आधुनिकता की दौड़ में
    सबको पीछे छोड़आए हो |
    प्यार और दैहिक भूख
    के अंतर को
    कैसे जान पाओगे

    सटीक और खूबसूरत रचना.

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  4. जी बिलकुल सही फरमाया है आपने, सुन्दर रचना.

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  5. पिंजरे में बंद
    पक्षी की वेदना
    कैसे पहचानोगे
    जब तुमने ऐसा जीवन
    कभी जिया ही नहीं
    bahut khoob likha hai.....

    जवाब देंहटाएं
  6. भावना और यथार्थ के अंतर को बड़ी खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है ! बहुत ही सार्थक एवं सशक्त रचना ! बधाई !

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  7. हो प्रकृति से दूर बहुत
    आधुनिकता की दौड़ में
    सबको पीछे छोड़आए हो |
    प्यार और दैहिक भूख
    के अंतर को
    कैसे जान पाओगे
    जब सात्विक प्यार के
    अहसास को
    दिल से न लगाओगे |

    बहुत सुन्दर...बहुत-बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  8. सबको पीछे छोड़आए हो

    जीवन को बहुत ही सलीक़े से उतारती हैं आप अपनी कविताओं में

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  9. sambednaon ko jagane wali sambedansheel rachna...apke sneh bristi ki kuch bundein hi sahi mile to ham badhe manobal se likhenge..apne blog pe sadar amantran ke sath

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