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न जाने कैसी कहानी थी
कुछ सोचा मनन किया |
वह मन की बात न कह पाई
बस यही गुनाह किया |
यही सोच कर हूँ परेशान
कि ऐसा कैसे किया |
जंगल की आग का अनुभव
उसने कैसे न किया |
हो कर चंचल प्याला छलकता
वह मुखर बनी रहती |
तब कभी उदास न रह पाती
मन पर बोझ न रखती |
कोमल भावनाओं से कभी
यूं न खेलती रहती |
अपने अछूते विचारों पर
सदा विहसती रहती |
बहुत ही खुबसूरत....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...बधाई
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर रचना ! लेकिन परेशानी का सबब समझ में नहीं आया ! किसने कौन सी कहानी सुना दी ? कुछ स्पष्टीकरण माँगती सी कविता है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर....
जवाब देंहटाएंवह मन की बात न कह पाई
जवाब देंहटाएंबस यही गुनाह किया
---बस यही गुनाह तो तकलीफदेह हो चलता है...उम्दा रचना.
मन के भावों को अभिव्यक्ति देती सुंदर रचना।
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ब्लॉग समीक्षा की 32वीं कड़ी..
पैसे बरसाने वाला भूत...
आशाजी, शायद आपने ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें अभी तक नहीं देखीं। यहाँ आपके काम की बहुत सारी चीजें हैं।
जवाब देंहटाएंbehtreen prstuti...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना...
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