26 जनवरी, 2012

बेटी

बेटी अजन्मी सोच रही 
क्यूँ  उदास माँ दिखती है 
जब  भी कुछ जानना चाहूँ 
यूँ  ही टाल देती है|
रह ना पाई कुलबुलाई 
समय देख प्रश्न  दागा 
क्या  तुम मुझे नहीं चाहतीं 
मेरे  आने में है दोष क्या 
क्यूँ  खुश दिखाई नहीं देतीं ?
 माँ  धीमे से मुस्कुराई 
पर  उदासी न छिपा पाई 
बेटी  तू यह नहीं जानती 
सब  की चाहत है बेटा 
जब  तेरा आगमन होगा 
सब  से मोर्चा   लेना होगा 
यही  बात चिंतित करती 
मन  में उदासी भरती |
जल्दी  से ये दिन बीते 
खिली  रुपहली धूप 
आज  मेरे आँगन में 
गूंजी  तेरी किलकारी 
इस  सूने उपवन में
मिली  खुशी अनूप 
तुझे  पा लेने में |
देखा  सोच बदलता मैनें 
अपने  ही घर में |
कितना  सुखमय है जीवन 
आज  में जान पाई 
रिश्तों  की गहराई 
यहीं  नजर आई |
तेरी  नन्हीं बाहों की उष्मा
और प्यार भरी सुन्दर अँखियाँ 
स्वर्ग कहीं से ले  आईं 
मेरे  मुरझाए जीवन में |
आशा




































15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर मार्मिक रचना!
    63वें गणतन्त्रदिवस की शुभकामनाएँ!

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  2. गहरे भाव लिए सुंदर रचना।

    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....
    जय हिंद... वंदे मातरम्।

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  3. बहुत सुन्दर .. बेटियों का प्यार ऊष्मा देता है .. काश यह बात सब समझ सकें

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  4. आज के चर्चा मंच पर आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
    का अवलोकन किया ||
    बहुत बहुत बधाई ||

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  5. मार्मिक उद्गार, धीरे-धीरे मानसिकता बदलती जा रही है.

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  6. बहुत मर्मस्पर्शी लिखा है आंटी।


    सादर

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  7. नारी के मन की ममतामय सम्वेदानोनाओं को कोमल शब्दों में पिरोया है.बहुत बधाईयां.

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  8. बहुत सुन्दर रचना ! बेटियाँ कितना सुख जीवन में भर देती हैं इसका आकलन करना असंभव है !

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  9. बहुत खूब ...बेटी ही एक औरत का सम्पूर्ण जीवन होती हैं

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  10. बेटी है तो दुनिया है... बहुत सुन्दर रचना...आभार

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  11. नाजुक सी रचना के लिए बधाई..

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