29 मई, 2012

कैसा मोह कैसी माया


कहीं कुछ टूट गया
हुई चुभन इतनी
सुकून भी खोने लगा
है उदास
 नन्हों की बाँहें थामें
डगर लंबी पार की
कठिन वार जीवन में झेले
उनको ही सवारने में
क्षमता से अधिक ही किया
जो भी संभव हो पाया
क्या रह गयी कमीं
उनकी परवरिश में
जो दो शब्द भी
मुंह से ना निकले
तपस्या के बदले में
है आज घरोंदा खाली
जाने क्यूं मन भारी
अहसास नितांत अकेलेपन का
मन को टटोल रहा
है कैसा मोह कैसी माया 
चोटिल उसे कर गया |


11 टिप्‍पणियां:

  1. मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......

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  2. क्या रह गयी कमीं
    उनकी परवरिश में
    जो दो शब्द भी
    मुंह से ना निकले
    तपस्या के बदले में
    है आज घरोंदा खाली

    ....यह आज के समय का कटु सत्य है....बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...आभार

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  3. तपस्या के बदले में
    है आज घरोंदा खाली
    जाने क्यूं मन भारी
    अहसास नितांत अकेलेपन का
    मन को टटोल रहा
    है कैसा मोह कैसी माया |
    बहुत ही मार्मिक पंक्तिया है
    बेहतरीन रचना...

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  4. अहसास नितांत अकेलेपन का
    मन को टटोल रहा
    है कैसा मोह कैसी माया |

    बहुत सुंदर भावों की प्रस्तुति,,,,,,

    RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,

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  5. जीवन के कटु यथार्थ से रू ब रू कराती मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ! आज के युग में सभी इन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं ! आपकी यह रचना हमारे समाज का दर्पण है ! बहुत सुन्दर !

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  6. wakai..kabhi kabhi ye khyaal aa hi jaata hai..kaisi moh kaisi maya...tamaam janjhal hone ke babjood...

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  7. jivan ke ythrth ko prakat karti hui sanvedan kavita

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  8. "तपस्या के बदले में
    है आज घरोंदा खाली "..

    मार्मिक भाव आशा जी.. सुंदर रचना !!

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  9. सबकुछ वारदिया सब कुछ त्याग करने के बाद मन कहता है
    उनको ही सवारने में
    क्षमता से अधिक ही किया
    जो भी संभव हो पाया
    क्या रह गयी कमीं
    उनकी परवरिश में ...

    ह्रदय स्पर्शी रचना... आभार

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