सारी रंगत गुम हो गयी
कारण किसे बताए
मंहगाई असीम हो गयी
सारा राशन हुआ समाप्त
मुंह चिढाया डिब्बों ने
पैसों का डिब्बा भी खाली
उधारी भी कितनी करती
वह कैसे घर चलाए
बदहाली से छूट पाए
मंहगाई का यह आलम
जाने कहाँ ले जाएगा
और न जाने कितने
रंग दिखाएगा
दामों की सीमा पार हुई
कुछ भी सस्ता नहीं
पेट्रोल की कीमत बढ़ी
कीमतें और बढानें लगीं
है यह ऐसी समस्या
सुरसा सा मुंह है इसका
थमने का नाम नहीं लेती
और विकृत होती जाती
इससे कैसे जूझ पाएगी
मन को कितना समझाएगी
किसी की छोटी सी फरमाइश भी
दिल को छलनी कर जाएगी |
इसकी मार है इतनी गहरी
कैसे सहन कर पाएगी |
इसकी मार है इतनी गहरी
कैसे सहन कर पाएगी |
आशा
कटू सत्य है ये....
जवाब देंहटाएंमहगाई ने तो आम इन्सान कि
कमर तोड दि है..
सत्य कहती रचना...
इसकी मार है इतनी गहरी
जवाब देंहटाएंकैसे सहन कर पाएगी |
सत्य कहती सुंदर रचना,,,,, ,
बहुत बढ़िया आंटी !
जवाब देंहटाएंसादर
आम आदमी की सच्ची कहानी कहती एक सशक्त प्रस्तुति ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंसही कहा महंगाई ने तो सभी की कमर तोड़ दी...बहुत बढ़िया आशा जी..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया……… मंहगाई डायन खाए जाते हे :)
जवाब देंहटाएंसशक्त प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसबकी हालत एक सी है इस मंहगाई में ... सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
जवाब देंहटाएंपैदल ही आ जाइए, महंगा है पेट्रोल ||
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बुधवारीय चर्चा मंच ।
अंतस को झकझोरती हुई बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंsahi likha hain aapne ...is mahngaayi se sabka bura haal hain
जवाब देंहटाएंअपनी ताकत को यहाँ, जांच जरा सा तोल।
जवाब देंहटाएंसुरसा बन बैठी हुई, मंहगाई मुह खोल।।
सच्ची कहानी कहती ...... प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंइस महंगाई ने तो अच्छे से अच्छे लोगों की कमर तोड़ दी है। आपकी रचना में इसी दर्द को बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया गया है।
जवाब देंहटाएंhar aamo-khas ki vyatha...
जवाब देंहटाएंsundar rachna