12 जून, 2012

मार मंहगाई की

हुआ मुख विवर्ण 
सारी रंगत गुम हो गयी 
कारण किसे बताए 
मंहगाई असीम हो गयी 
सारा राशन हुआ समाप्त 
मुंह  चिढाया डिब्बों ने 
पैसों  का डिब्बा भी खाली 
उधारी भी कितनी करती
वह कैसे घर चलाए 
बदहाली से छूट पाए
मंहगाई का यह आलम 
जाने कहाँ ले जाएगा 
और न जाने कितने
रंग दिखाएगा
दामों की सीमा पार हुई 
कुछ  भी  सस्ता नहीं
पेट्रोल की  कीमत बढ़ी 
कीमतें और बढानें लगीं 
वह देख रही  यह दारुण मंजर
भरी  भरी आँखों से
है  यह ऐसी समस्या 
सुरसा  सा मुंह है इसका
थमने का नाम नहीं लेती 
और विकृत होती जाती 
इससे कैसे जूझ पाएगी 
मन को कितना समझाएगी
किसी  की छोटी सी फरमाइश भी
दिल को छलनी कर जाएगी |
इसकी  मार है इतनी गहरी
कैसे सहन कर पाएगी |


आशा





15 टिप्‍पणियां:

  1. कटू सत्य है ये....
    महगाई ने तो आम इन्सान कि
    कमर तोड दि है..
    सत्य कहती रचना...

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  2. इसकी मार है इतनी गहरी
    कैसे सहन कर पाएगी |

    सत्य कहती सुंदर रचना,,,,, ,

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  3. आम आदमी की सच्ची कहानी कहती एक सशक्त प्रस्तुति ! बहुत बढ़िया !

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  4. सही कहा महंगाई ने तो सभी की कमर तोड़ दी...बहुत बढ़िया आशा जी..

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  5. बहुत बढिया……… मंहगाई डायन खाए जाते हे :)

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  6. सबकी हालत एक सी है इस मंहगाई में ... सटीक प्रस्तुति

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  7. मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |

    पैदल ही आ जाइए, महंगा है पेट्रोल ||

    --

    बुधवारीय चर्चा मंच

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  8. अंतस को झकझोरती हुई बेहतरीन रचना...

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  9. अपनी ताकत को यहाँ, जांच जरा सा तोल।
    सुरसा बन बैठी हुई, मंहगाई मुह खोल।।

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  10. सच्ची कहानी कहती ...... प्रस्तुति !

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  11. इस महंगाई ने तो अच्छे से अच्छे लोगों की कमर तोड़ दी है। आपकी रचना में इसी दर्द को बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया गया है।

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