20 जुलाई, 2012

ध्येय मेरा

नहीं आसान इस लोक में 
दुर्गम मार्ग से जाना 
सकरी बीथिका में 
कंटकों से बच पाना 
पर  एक लक्ष्य एक ध्येय 
देता संबल मुझे 
तुझ तक पहुँचने का 
तुझ में रमें रहने का 
मन में व्याप्त आतुरता 
खोजती तुझे 
दीखता जब पहुँच मार्ग 
कोई बंधन, कोई आकर्षण 
या  हो मोह ममता
सब बोझ से लगते
 उन् सब से तोड़ा नाता 
श्याम सलौने तुझसे 
जब से जोड़ लिया नाता 
खुद  को भी भूल गया
तुझ  में मन खोया ऐसा 
तेरी  मूरत में डूबा 
साक्षात्कार हो तुझसे 
है बस यही ध्येय मेरा |
आशा




11 टिप्‍पणियां:

  1. साक्षात्कार हो तुझसे
    है बस यही ध्येय मेरा |

    बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
    बहुत सुंदर रचना,
    RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....

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  2. मन में आस्था सच्ची हो तो साक्षात्कार होगा ही....
    सुन्दर रचना आशा जी.
    सादर
    अनु

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  3. श्याम के रंग में रंगी सशक्त रचना ! सच्ची श्रद्धा और लगन हो तो हर ध्येय की पूर्ति संभव है ! शुभकामनाएं !

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  4. सच्ची लगन ध्येय प्राप्ति का सरल मार्ग है... सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार आशाजी

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  5. सच्ची लगन और मन में पूर्ण आस्था ही ध्येय प्राप्ति का सरल मार्ग है... बहुत सुंदर रचना,

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  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार के  चर्चा मंच  पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  7. बहुत सुंदर भाव
    साक्षात्कार हो तुझसे
    है बस यही ध्येय मेरा |

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  8. तुझ में मन खोया ऐसा
    तेरी मूरत में डूबा
    साक्षात्कार हो तुझसे
    है बस यही ध्येय मेरा |
    बहुत सुन्दर ....

    जवाब देंहटाएं
  9. साक्षात्कार हो तुझसे
    है बस यही ध्येय मेरा

    वाह ..

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  10. श्याम के रंग में पगी ... लाजवाब सुन्दर रचना ... भावमय ...

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