27 फ़रवरी, 2013

आतंकवादी

कटुता ने पैर पसारे 
शुचिता से कोसों दूर हुआ 
अनजाने में जाने कब 
अजीब सा परिवर्तन हुआ 
सही गलत का भेद भी 
मन समझ नहीं पाया 
सहमें सिमटे कोमल भाव 
रुके ठिठक कर रह गए 
हावी हुआ बस एक विचार
कैसे किसे आहत करे |
धमाका करते वक्त भी 
ना दिल कांपा ना हाथ रुके 
ऐसी अफ़रातफ़री मची 
मानवता चीत्कार उठी
फंसे निरीह लोग ही 
हादसे का शिकार हुए 
आहत हुए ,कई मरे 
अनगिनत घर तवा़ह हुए
शातिरों की जमात का तब भी 
एक भी बन्दा विदा न हुआ 
शायद उन जैसों के लिए 
ऊपर भी जगह नहीं 
गुनाहों की  माफी़ के लिए 
कहीं भी पनाह नहीं |
आशा


11 टिप्‍पणियां:

  1. शायद उन जैसों के लिए
    ऊपर भी जगह नहीं
    गुनाहों की माफी़ के लिए
    कहीं भी पनाह नहीं |

    -सटीक!!

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  2. बहुत बढ़िया है आदरेया ||

    ना ही नीचे धरा पर, ना ऊपर भगवान् |
    इनको मिलनी है जगह, ना ही निकले जान |
    ना ही निकले जान, जिंदगी भर तडपेंगे |
    निश्चय ही हैवान, धरा पर पड़े सड़ेंगे |
    पीते रहते खून, मारकर सज्जन राही |
    कौन करेगा माफ़, हुई हर जगह मनाही ||

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  3. बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार आदरेया...

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  4. ऐसे लोगों के लिए ऊपर जगह हो न हो इस धरती पर उनका खौफ खूब तारी है ! दुनिया भर में दहशत फैला कर सब का जीना मुहाल कर रखा है ! अब तो ईश्वर को ही न्याय कर उन्हें अपने पास बुला लेना चाहिए ! सुन्दर सशक्त प्रस्तुति !

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  5. ना ही नीचे धरा पर, ना ऊपर भगवान् |
    इनको मिलनी है जगह, ना ही निकले जान |
    ना ही निकले जान, जिंदगी भर तडपेंगे |
    निश्चय ही हैवान, धरा पर पड़े सड़ेंगे |
    पीते रहते खून, मारकर सज्जन राही |
    कौन करेगा माफ़, हुई हर जगह मनाही ||
    बहुत ही अच्छा लिखा आपने .

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  6. जो बच्चों को भी न बख्शे उसे माफ़ी मिलनी भी नही चाहिए ..

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  7. हम सभी आतंक के दहशत को झेल रहे है !
    उन्हें तो ख़ुदा से भी डर नहीं है !
    सुन्दर प्रस्तुति !

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  8. अपने लिए जन्नत के लोभ में लोग दूसरों को दोजख में डालते हैं- कैसी मानसिकता !

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