महकी चहकी
पहचान बनी
रंग भरा प्रातः ने
संध्या ने रूप संवारा
जीवन हुआ
सरस सुनहरा
पर धूप सहन ना कर पाई
वह कुम्हलाई
तब साथ निभा कर
उसे हंसाया
मंद पवन के झोंके ने
तरंग उमंग की जगी
तरुनाई छाने लगी
है इतनी अल्हड़
जब भी निगाहें ठहरती
टकटकी सी लग जाती
देखती ही रह जातीं
वह सकुचाती
अपने आप में
सिमटना चाहती
यही है कुछ ख़ास
जो नितांत उसका अपना
देखते तो हैं पर
उसे छू नहीं सकते
पर सपने में भी उससे
दूर हो नहीं सकते |
आशा
कुछ खास है
जवाब देंहटाएंआज की कली कल की फूल...
यही मनमोहिनी रूप आत्मा को पुलकित कर जाता है ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंकली की आकर्षण ही अलग है
जवाब देंहटाएंlatest post मोहन कुछ तो बोलो!
latest postक्षणिकाएँ
हर शब्द की अपनी एक पहचान बहुत खूब कहा अपने आभार
जवाब देंहटाएंये कैसी मोहब्बत है
बहुत सुंदर ...कोमल उद्गार मन के ....!!
जवाब देंहटाएंपावन सी रचना ...
शुभकामनायें आशा जी ।
सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति है आदरेया-
जवाब देंहटाएंआभार आपका ||
बहुत सुंदर मनभावन रचना,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: पिता.
तब साथ निभा कर
जवाब देंहटाएंउसे हंसाया
मंद पवन के झोंके ने......प्रकृति का सुंदरतम् संगम।
सपने में भी उससे
दूर हो नहीं सकते..........सद्गामी आशा।
सुंदर सजी कविता
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