03 मार्च, 2013

मकसद


गुनगुनाने का कुछ 
मकसद तो हो 
अपनेपन का कहीं
ख्याल  तो हो
सरल होता तभी 
जीवन का सफर 
जब सोच का कोई
कारण तो हो |
प्रीत की है रीत यही 
सुहावनी ऋतु हो 
प्यार की छाँव के लिए 
एक दामन तो हो  |
अपनी सोच पर खुद को 
कभी मलाल न हो 
ओस से भीगी रात हो
उदासी का आलम न हो
गुनगुनाया नवगीत
हो कर  मगन
स्वप्न में बुना
नया शाल पहन
तभी हुई दस्तक 
खोले पट स्वप्न से
बाहर निकल
पैर पड़े अब धरती पर
झूम कर आई महक
जानी पहचानी अपनी सी
दिल बाग़ बाग़ हुआ 
मकसद गुनगुनाने का
 अधूरा न रहा
जीवन के सफर में
कोई हमसफर मिला |
आशा



17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया है आदरेया |
    आभार आपका -

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,सादर आभार आदरेया.

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!
    आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 04-03-2013 को सोमवारीय चर्चा : चर्चामंच-1173 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  4. प्यार की छाँव के लिए दामन मिल ही गया, रचना बहुत अर्थपूर्ण है, बधाई.

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  5. वाह ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूब सुन्दर लाजबाब अभिव्यक्ति।।।।।।

    मेरी नई रचना
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

    ये कैसी मोहब्बत है

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति.....
    साभार...........

    जवाब देंहटाएं
  8. प्यारा साथ हो कठिन राह भी आसान हो जाती है ..बहुत बढ़िया रचना ..

    जवाब देंहटाएं
  9. अरे वाह आज की रचना तो बड़ी खूबसूरत बन पड़ी है ! इसी तरह गाते गुनगुनाते मनचाहे हमसफ़र के साथ बाकी का रास्ता तय हो तो किसीका मन क्यों न पुलकित हो ! आनंद आ गया ! बहुत ही सुंदर !

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  10. बहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।

    जवाब देंहटाएं

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