31 अक्टूबर, 2014

उदासी



कुछ रहा ही क्या कहने को
जब गम का साथ है |
जाने क्यूं रूठी बैठी है
बिन बात उदास है |
तुझे समझना आसान नहीं
पर कोशिश तो की थी |
निगाहों से उसे  गिरा दिया
यह कैसी बात है |
एक मौक़ा तो दिया होता
यदि अपना समझती |
तू मीत उसकी होती
उसे अपना कह्ती |
अपनत्व तुझे हरपल मिलता
यूं उदास न रहती |
प्यार की ऊष्मा पा 
खुश सदा रहती |
आशा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: