14 जून, 2015

है कितना अंतर


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                                                                                           है कितना अंतर 
कल और आज के सोच में
गहरी खाई हो गई है
विचारों में |
आज भी  याद आते है वे लम्हें
जब होते थे बाबा  दादी के साथ
नाना नानी मामा मामी से
कितना प्यार मिलता था
बता नहीं पाते शब्दों में |
अच्छा लगता था उनकी सेवा करना
कहानी सुनना
नई नई फरमाइश करना |
वह अपनापन वह ममता अब कहाँ
संवेदना के अभाव में
बोझ नजर आते हैं
घर  भी यदि  आते हैं |
अपने आगे और कोई कुछ नहीं
बिना मतलब सम्बन्ध नहीं
सारी अक्ल समाई है
आज की सोच में |
वह सम्मान वृद्धों को मिले
कल्पनातीत लगता है आज
 जिसकी अपेक्षा होती है
उन्हें  इस उम्र में |
 मान सम्मान तो दूर रहा
घर के एक कौने में भी  जगह नहीं
वृद्धाश्रम खोजे जाते बोझ टालने को  
अब भार हो कर रह गए है |
 भौतिकता वादी  इस युग में 
रिश्तों की गरिमा खो गई है 
अपने सुख दुःख जानते हैं 
वृद्धों के कष्ट  भूल गए हैं |

आशा

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