है कितना अंतर
कल और आज के सोच में
गहरी खाई हो गई है
विचारों में |
आज भी याद आते है वे लम्हें
जब होते थे बाबा दादी के साथ
नाना नानी मामा मामी से
कितना प्यार मिलता था
बता नहीं पाते शब्दों में |
अच्छा लगता था उनकी सेवा करना
कहानी सुनना
नई नई फरमाइश करना |
वह अपनापन वह ममता अब कहाँ
संवेदना के अभाव में
बोझ नजर आते हैं
घर भी यदि आते
हैं |
अपने आगे और कोई कुछ नहीं
बिना मतलब सम्बन्ध नहीं
सारी अक्ल समाई है
आज की सोच में |
वह सम्मान वृद्धों को मिले
कल्पनातीत लगता है आज
जिसकी अपेक्षा होती है
उन्हें इस उम्र में |
मान
सम्मान तो दूर रहा
घर के एक कौने में भी जगह नहीं
वृद्धाश्रम खोजे जाते बोझ टालने को
अब भार हो कर रह गए है |
भौतिकता वादी इस युग में
रिश्तों की गरिमा खो गई है
अपने सुख दुःख जानते हैं
वृद्धों के कष्ट भूल गए हैं |
भौतिकता वादी इस युग में
रिश्तों की गरिमा खो गई है
अपने सुख दुःख जानते हैं
वृद्धों के कष्ट भूल गए हैं |
आशा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: