16 नवंबर, 2015

यादें भूल न पाई


तुम स्नेह भूले तो क्या 
एक दीप जलाया मैंने 
प्यार भारी सौगात का 
झाड़ा पोंछा कलुष मन का 
कोई भ्रम न पलने दिया 
मान का मनुहार का 
फिर किया स्वागत हृदय से
आने वाले पर्व का 
नेह से थाली सजाई 
हिलमिल सबने दूज मनाई 
पर एक कसक मन में रही 
तुम्हारी यादें भूल न पाई
हर वर्ष दिवाली आती है 
बीते कल में ले जाती है 
बचपन में जो आनंद था त्यौहार का 
जब मान  मनुहार हुआ करते थे
मां बीच बचाव करती थी
वे लम्हे मैं भूल न पाती 
मन उदास हो जाता है 
क्या यही रीत है  दुनिया की 
सोचती रह जाती हूँ |
आशा



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